काव्य : स्वप्न – रश्मि लहर लखनऊ

स्वप्न

झाँक रहे हैं नयनों के
कोने-कोने से
स्वप्न।

छिपे कांख में थे यथार्थ की,
कसमसाए वे कब?
पुलकित पवन उमीदों की भी,
वे पाए थे कब??

दौड़ रहे मन के कानन
में, मृगछौने-से
स्वप्न।

गलबहियाँ कर के मिलतीं,
कुछ स्मृतियाँ चंचल।
रंगत बदले फिर कपोल,
मल दें बतियां सन्दल।।

खूब लुभाते हैं माखन-
मिश्री दोने-से
स्वप्न।

रूप सजाता मन, अतीत के
विरही वादों का।
पुनर्जन्म ज्यों होता भूली-
बिसरी यादों का।।

कर लेते मन को वश में,
जादू-टोने-से
स्वप्न।।

रश्मि लहर
लखनऊ

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