

लघुु कथा
अन्धा मोड़
मुझे रामलाल जी का फोन आया फोन सुनकर मैं घबरा गया। मेरे मुँह से बस यही निकला कि हे भगवान अभी-अभी तो पाँच मिनट पहले ही यहाँ से गई थी! मैं उसे दरवाज़े से खड़ा-खड़ा हाथ हिलाकर बाय-बाय करता रहा और मेरे देखते ही देखते एक मोड़ पर वह मुड़ गई और मैं घर के अंदर आ गया। मैंने तुरंत रामलाल जी से कहा मैं अस्पताल आ रहा हूँ । असल में सुमन मेरे आफिस में मेरे साथ ही काम करती थी वह बड़ी अच्छी लड़की थी आज आफिस की रविवार होने के कारण छुट्टी थी इसलिए मेरे घर आई थी।और थोड़ी देर रूकने के बाद चली गई मैं उसे बाहर तक छोड़ने गया और जब तक वह कालोनी के मोड़ से मुड़ नहीं गई तब तक मैं दरवाज़े पर ही खड़ा रहा मुझे अभी घर के अंदर आये हुए दस मिनट ही हुए थे कि मुझे रामलाल जी का फोन आया तब पता चला कि सुमन का एक्सिडेंट हो गया और उसे सिविल अस्पताल में भर्ती कर दिया है। मैं तुरंत अस्पताल पहुंचा अस्पताल के गेट पर ही रामलाल जी मिल गए उनके साथ मैं सीधा सुमन जिस वार्ड में भर्ती थी वहीं पहुँच गया मैंने देखा सुमन एक पलंग पर लेटी थी उसके सिर और हाथ में पट्टी बंधी हुई थी पर वह होश में थी जिसे देख मेरी घबराहट थोड़ी कम हो गई और मन ही मन मैं भगवान का धन्यवाद करने लगा मुझे देखते ही सुमन के चेहरे पर भी हल्की सी मुस्कान आ गई। मैंने उसके पास बैठते ही उससे पूछा यह सब कैसे हुआ मेरी तो जान ही निकल गई थी और कहते-कहते मेरी आखों से आंसू निकल पड़े जिसे देख वह बोली घबराइए नहीं मैं बिल्कुल ठीक हूँ जरा सी चोट आई है और मुस्कुराते हुए बोली चलो अच्छा हुआ कम से कम आज पता तो चल गया कि आप मुझे कितना प्यार करते हैं,मेरी कितनी चिंता करते हैं जो रामलाल जी के एक फोन पर नये लड़कों की तरह दौड़ते चले आये सचमुच मैं बहुत भाग्यशाली हूँ जो इस अनजाने शहर में आप जैसों के सानिध्य में रह रही हूँ। सच मानो आप लोगों के रहते मुझे मेरे परिवार की ज़रा भी याद नहीं आती और इतना कहते-कहते उसकी भी आखों में आंसू आ गए तब मैंने तुरंत उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा अरे मैं और मेरा परिवार भी तो तेरा ही परिवार है यहाँ तूं मेरी बेटी की तरह है।
फिर अचानक मुझे याद आया और मैंने उससे पूछा पर ये सब हुआ कैसे?तब सुमन बोली मैं आपके घर से उस मोड़ तक आई और वहीं से मैंने आपको बाय किया पर जैसे ही मैं पलटी कि उसी मोड़ से एक मोटर साइकिल वाला मुझसे टकरा गया मैं घबरा गई मेरी आखों के सामने अंधेरा सा छा गया और फिर मुझे होश नहीं रहा।होश तब आया जब मैंने अपने आपको इधर अस्पताल में देखा सुमन की बात खत्म ही हुई थी कि तभी रामलाल जी बोले यार पंडित जी भाग्य से उसी वक्त मैं भी आपके घर आ रहा था और उसी मोड़ पर पहुंचा ही था कि मेरे ही सामने यह एक्सीडेंट हो गया मोटर साईकिल वाला लड़का पता ही नहीं चला कब वहाँ से भाग लिया। मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करूं! तब मैंने आपको फोन करने के बजाय इसे अस्पताल ले जाना उचित समझा और मैं एक राहगीर की मदद से इसे अस्पताल ले आया।
रामलाल जी से पूरा किस्सा सुन मैंने रामलाल जी का हाथ अपने हाथ में लेकर उनका बहुत-बहुत धन्यवाद करते हुए कहा यार रामलाल जी वह “मोड़ अन्धा मोड़ है” जहाँ अक्सर इसी तरह के एक्सीडेंट हो जाया करते हैं। तब रामलाल जी बोले यार पंडित जी सुमन जब आपकी बेटी जैसी है तो मेरी भी बेटी ही है इसमें धन्यवाद की क्या बात । मैंने देखा उस वक्त सुमन की आखों में आंसू आ गए थे पर वे आंसू खुशी के आंसू थे।
–आर के तिवारी
सागर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
