

लघुकथा
बचत
सोमिल एक निजी फेक्ट्री में,मैकेनिक का काम करता है,
उसकी पत्नी सुचिता भी घर में सिलाई का काम करती है,दोनो की आमदनी से घर का खर्च ठीक ठाक चलता है, लेकिन सुचिता अपनी कमाई से कुछ राशि बचाती रहती है ताकि आड़े वक्त में बचत काम आ सके और उनको कभी किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े l सुचिता कम पढ़ी लिखी है किंतु उसकी सोच अच्छी पढ़ी लिखी महिलाओं सी है l दूर की सोच रखती है, ताकि अपने सपनों को साकार कर सके l
टी .व्ही.पर जब उसने समाचार सुना कि 2000/-
रुपये के नोट अब बंद हो रहे हैं और उनका निपटान 30 सितंबर 2023 तक करना जरूरी है, अन्यथा 2000/- के नोट काम के नहीं रहेंगे l वह दौड़ी दौड़ी अपनी लकड़ी की अलमारी के पास गयी जिसमें उसने 2000/- हजार के 5 नोट बचत के रखे थे l
अलमारी खोलते ही अपने बटुए को देखा, लेकिन ये क्या, उसके छोटे से बटुए में कुछ छेद दिखाई दे रहे हैं ,जल्दी जल्दी उसने अपना पर्स खोला देखा, नोटों में भी कुछ छेद हो गये हैं, शुक्र है पूरी तरह से खराब नहीं हुए है, लगता है चूहों ने कमाल दिखाया है, हां हमारा घर भी तो कच्चा पक्का ही है, उपर से सिलाई का काम भी करती हूँ चूहे तो घूमते ही रहते हैं l चलो अब सोमिल को बताकर इन नोटों को बैंक में जाकर जमा कर दूंगी l 2000/-के नोटों से छुटकारा भी मिल जायेगा और बचत के रुपये भी किसी काम में आ जायेंगे l
लेकिन अब से बचत के रुपये घर में नहीं रखूंगी,
वो आंगनबाड़ी दीदी कह रही थी, डाकघर में खाता खुलवा लो तुम्हारी बचत भी सुरक्षित रहेगी और ब्याज भी ज्यादा मिलेगा , इस तरह बचत भी बढ़ती रहेगी l
– –तारकेश्वर चौरे
खंडवा

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
