लघुकथा : वरना ऐसे हाल होंगे – कैलाश सोनी सार्थक उज्जैन

लघुकथा

वरना ऐसे हाल होंगे

चाॅंद सितारे तुम्हारी झोली में भर दूंगा,संसार की सारी खुशियाॅं तुम्हारे दामन में भर दूंगा सुख की नदिया बहा दूंगा तुम्हारे जीवन में….
विश्वास ने आस्था को अपने मीठे शब्दों से मोहपाश में बांध लिया था जब दोनों एक दूजे से प्रेम करते थे मिलने को तड़पते थे
घरवालों से बगावत कर बैठे थे दोनों और शादी कर ली
शादी को एक साल छ महीने और दो दिन हुए हैं दोनों आज तलाक के लिए लड़ रहे हैं दोनों को एक दूजे से तलाक चाहिए
विश्वास बोला…वकील से आस्था एक गिरी हुई सोच की लड़की है ..
उधर आस्था बोली..विश्वास एक घटिया लड़का है बात-बात में झूठ बोलता है उससे मेरा भरोसा ही उठ गया
दोनों की बातें सुनकर मेरा दिल सोचने लगा..जब प्यार करते थे तब विश्वास का झूठ समझ में क्यों नहीं आया मैं ये कर दूंगा मैं वो कर दूंगा तब लड़की हूर लग रही थी आज मुसीबत लग रही है हजारों लड़कियाॅं प्रेम जाल में फंसकर आज भी ऐसे बंधन को जी रही है जिसे जीना उसके बस की बात नहीं है
मुहब्बत करना चाहिए मगर विवाह के लिए मीठी बातें आधार नहीं होना चाहिए,
*वरना ..ऐसे हाल होंगे*

कैलाश सोनी सार्थक
उज्जैन

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