

लघुकथा
चूड़ियाँ
आज न जाने कहाँ से चूड़ीदान हाथ में आ गया।बहुत देर तक माँ के हाथों का बना सुंदर सजीला डब्बा निहारती रही। मुझे याद है जब माँ ने स्नेहिल नेत्रों से निहारते हुए मुझे विदाई के वक़्त ये दिया था। आँसुओं से भरी मेरी निगाह इसकी सजावट पर जा टिकी थी। माँ ने मुस्कुराते हुए कहा था जब भी मन विचलित हो इसे खोल कर देख लेना।
आज शादी के दस साल बाद भी इस चूड़ीदान में जैसे मेरी सारी परेशानियों का हल छिपा है।साथ ही माँ को अपने पास महसूस करने का इससे बेहतर तरीका मुझे नहीं मिलता। तीन कैबिनेट वाला ये चूड़ीदान अपने अंदर मेरे बचपन से अब तक की यादों के साथ सीख भी समेटे हुए है।
खोलते ही पहले कैबिनेट में मेरे बचपन की स्प्रिंग वाली लचीली प्लास्टिक की चूड़ियाँ देख सामने बचपन तैरने लगता है। माँ ने इसमें एक रंगबिरंगी छोटी सी चिट्ठी में लिखा है-” बचपन के मासूम रिश्ते। इतने ही लचीले और खास होते हैं।उन्हें खास बनाये रखना।”
दूसरे कैबिनेट में मैटल की सिल्वर और गोल्डन चूड़ियाँ देख सारी जवानी जैसे फिर जी ली हो मैंने।स्कूल की फेयरवेल पार्टी के लिए पहनी गयी पहली साड़ी और उसकी ये मैचिंग चूड़ियाँ आज भी वैसी की वैसी। माँ ने प्यारे से शाही कागज़ पर लिखा-” कुछ ऐसी ही मजबूती चाहिए होती है रिश्तों को। ये मजबूती तुम्हारे अंदर है।खुद को कभी कमज़ोर मत पड़ने देना।”
आखिरी कैबिनेट में लाल और हरी काँच की पहली चूड़ियाँ जो रिश्ता होने पर मुझे पहनाई गयीं थीं। उसके साथ ही कुछ फैंसी चूड़ियाँ भी हैं जिन्हें सम्भाल कर उठाते हुए एक-एक चूड़ी को हर बार चेक करके रखती हूँ। कहीं गलती से भी कोई टूटी न हो। भरी आँखों से हर बार माँ का कोरे पन्ने पर लिखा कुछ पढ़ने की कोशिश करती हूँ।इसपर माँ ने लिखा-” शादी जैसे बड़े बदलाव के बाद हम लड़कियाँ, हमारा मन और हमारे रिश्ते भी काँच जैसे ही हो जाते हैं। शोशेबाज़ी से परे उन्हें सम्भाल कर रखना।”
अचानक आज कैबिनेट के कोने से कुछ झाँकने लगा तो मैंने ध्यान से एक निकाल कर देखा। एक प्यारा सा काँच का कड़ा और माँ की खूबसूरत लिखाई वाला कार्ड हाथ आया। लिखा था-” जिंदगी तुम्हें टूटे होने पर भी सम्भलना सिखा देगी। टूटे रिश्ते किसी को चुभें न, इसलिए उन्हें स्नेह, क्षमा जैसे सुंदर धागों से बांध लेना। रिश्तों की मजबूती और उम्र दोनों बढ़ जाएंगीं।”
माँ कितनी सुलझनें यूँही सुलझा देतीं हैं!
–भारती वशिष्ठ
अधिकारी, केनरा बैंक,
सोनीपत।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
