काव्य : आदत सी बन गई हो तुम! – देवेन्द्र थापक, भोपाल

आदत सी बन गई हो तुम!

मेरा ख्बाब, मेरी आदत सी
बन गई हो तुम
मेरी यादों को जो,सुंकू दे
ऐसी राहत सी,बन गई हो तुम

मेने तो चाहा, मेरी मंजिल हो तुम
रूक सकूं,वो मुकाम बन गई हो तुम

तोड़े जब भी फूल मेने,गुलशन से
मेरे हाथों की महक, बन गई हो तुम

लिखूँ जब भी शब्दो को
में किसी कोरे कागज पर
कभी गज़ल कभी कविता
बन गई हो तुम

जब भी जाना चाहा गर,
मेने ऊंचाइयों पर,
मेरे परबाज बन गई हो तुम

आरोप लगे बहुत मुझपर ,
ज़माने की अदालत मे,
हर वक्त मेरी,
जमानत बन गई हो तुम
मेरा ख्बाब——–मेरी आदत
बन गई हो तुम !

देवेन्द्र थापक,
भोपाल मध्यप्रदेश

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