

सवेरा
मन की उर्वर धरा पर बोये थे मैंने,
आकाश भर बीज ,
सुनहले – रुपहले सपनों के,
कुछ तितलियों के पंखों से,
रेशम से कोमल,
अम्बर के कैनवास पर उभरे
इंद्रधनुष- से ,
भोर में खिली कुमुदिनी से
संतूर के सुरों से …
सुंदर वन में दौड़ते
मृग छौने- से
झरते पलाश- से
रक्तांग अमलताश- से
खिलते बुरांश- से
पहाड़ी नरगिस- से
ओस की बूंँद से सुकुमार
हिम शिखर से, उन्नत -से
मौली के धागों- से
मन्नत -से
केसर की क्यारी से
जन्नत- से
न जाने कैसे! उनमें से कुछ बीज गये…
यत्न से सहेजा था हृदय- कोटर में फिर भी छीज गये
कुछ अश्रुओं की नमी से भीग गये
कुछ को किया निष्कासित
कुछ को दिया वनवास
धीरे- धीरे हुआ उनका ह्रास
कुछ हो गये
मुट्ठी की रेत
एक एक करके हुए खेत
इंद्रधनुषी से हुए श्याम-श्वेत
पर उनमें से कुछ हो गये हैं मेरी आंँखों के जुगनू
जो देख रहें हैं उस पार का सवेरा.
–सुमन सिंह चन्देल
मुजफ्फरनगर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
