

हास्य व्यंग
मनुहार भाभी
कुछ समय पहले किसी पत्रिका में एक कहानी पढ़ी थी जिसका शीर्षक था “मनुहार भाभी”. यह कहानी देवर भाभी की थी जिसमें भाभी अपने लेखक देवर से यह कहती है कि, यदि तुम इतने अच्छे लेखक हो तो एक कहानी, जो मुझ पर केंद्रित हो वह लिखो। भाभी के मन में स्वयं के प्रति एक नायिका की छवि रही होगी तभी उन्होंने पूरे अधिकार के साथ अपने देवर से यह बात कही,क्योंकि उनके रूठने पर घरवालों को बहुत मनुहार या मान मनोबल करनी पड़ती थी ,इसलिए इस कहानी का नाम ही मनुहार भाभी पड़ गया।
अब मनुहार करने का अधिकार सिर्फ महिलाओं को हो ऐसा नहीं है। कई बार कुछ पुरुष भी किसी काम को बहुत मान मनोबल के बाद ही करते हैं जैसे हमारे सरकारी कर्मचारी फिर वह चाहे महिला हो या पुरुष ।बहुत मक्खन लगाना पड़ता है ।
खैर यह तो ठीक है पर ऐसा होता क्यों है इसका कारण जो मुझे ना समझ की समझ में आया, वह यह है कि हम सभी के दिलों में हमारे पूर्वजों की वह छवि अंकित है, जिसमें वे राजे महाराजाओं की तरह रहा करते थे और उनके आगे-पीछे नौकर चाकर उनकी जी हजूरी करते रहते थे ।अब वह दौर तो रहा नहीं परंतु अतीत की यादें हमें अभी हमारे नायक होने का एहसास कराती रहती हैं और हम भूत और वर्तमान के झूले में झूलते रहते हैं ।यथार्थ में हमारे पैर नहीं टिक पाते इसलिए हम आज भी मनुहार पसंद हैं।
हम मनुहार पसंद हैं इसके लिए पूरा का पूरा दोष हमारा नहीं है आधा दोष उनका भी है जो चापलूसी करते हैं ।मक्खन बाजी करते हैं अपना काम निकलवाने के लिए ।जब काम सीधे सीधे नहीं निकल पाता तो लोग लग जाते हैं मक्खन लगाने में। इन मक्खन पालिश करने वालों ने भी कहीं ना कहीं हमारी आदतों को बिगाड़ दिया ।वैसे हमारे संस्कार भी इन सब के पीछे का कम जिम्मेदार नहीं है ।जिन जिन बच्चों को बहुत ज्यादा लाड प्यार में रखा जाता है वे भी बहुत नाक वाले हो जाते हैं और फिर बड़े होने पर भी बचपन के संस्कार पीछा नहीं छोड़ पाते और लग जाती है मनुहार की आदत।
एक चीज और होती है वह संकोच। संकोची मनुष्यों को भी बहुत मनाना पड़ता है ,तब जाकर वह किसी काम को सही ढंग से कर पाते हैं ।
हमारी मनुहार भाभी के हाव भाव से ऐसा नहीं लगता कि वह संकोची हैं और ना ही लेखक महोदय को अपना काम निकलवाने के लिए मक्खन पालिश की जरूरत पड़ती होगी, तो एक कारण बचता है वह है संस्कार और घर में सबसे ज्यादा लाड प्यार और दुलार ने ही भाभी को मनुहार भाभी बना दिया।
–सावन कुमार सिटोके
हरदा

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
