लघुकथा : सामना ! – यशोधरा भटनागर देवास

लघुकथा

सामना!

लड़खड़ाते कदमों से दीवार का सहारा लिए,किसी तरह आखिरी सांसों को कसकर पकड़े वह खड़ा हो गया।
न जाने क्यों आईने में खुद को निहारने की इच्छा इतनी बलवती हो गई!अंतिम समय में भी चेहरे से इतना मोह!इतनी आसक्ति!
वह खुद पर ही हँस पड़ा।
सामने एक चेहरा झाँका।पर वह पहचान ही न पाया।
“कौन हो तुम?”
कुछ रुठा-रुठा सा, कुछ अकड़ा-अकड़ा सा,कुछ भीगा भीगा सा स्वर-“ज़मीर हूँ तुम्हारा। क्या पहचान रहे हो मुझे?”
उसकी नज़रें और सिर दोनों ही झुक गए।
“कितनी बार मारा है तुमने मुझे?” उसने बिना कुछ बोले सिर झुका लिया।
“एक बार देख सकोगे मुझे?”
पूरा साहस जुटाकर उसने निगाहें उठाकर आईने की ओर देखा। आईने की किरिच-किरिच बिखर गई….कस कर थामी हुई सांसें भी छूट गईं।

यशोधरा भटनागर
देवास

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here