काव्य : बारिश की बूंद – अंजनीकुमार’सुधाकर’ बिलासपुर

बारिश की बूंद

बारिश की बूंदें
बरसतीं हैं जैसे
कि
अधरों से शबनम
झरी जा रही हैं…।

बारिश की बूंदें
बरसती हैं जैसे
कि
पलकों पर कतरे
धरी जा रही हैं…।

बारिश की बूंदें
बरसती हैं जैसे
कि
भिगो देने उनको
मरी जा रही हैं…।

बारिश की बूंदें
बरसती हैं जैसे
कि
रिझाने में उनके
सजी जा रही हैं…।

बारिश की बूंदें
बरसती हैं जैसे
कि
पलकों से आँसू
गिरी जा रही है…।

बारिश की बूंदें
बरसती हैं जैसे
कि
चिलमन की चोरी
धरी जा रही है…।

बारिश की बूंदें
बरसती हैं ऐसे
कि
उदासे जमीं पर
यकीं ला रही है…।

बारिश की बूंदें
बरसती हैं ऐसे
कि
पनघट प्रेम गागर
भरी जा रही है…।

बारिश की बूंदें
बरसती हैं ऐसे
कि
प्रेम पर्वत पर घूंघर
बजी जा रही हैं…।

बारिश की बूंदें
बरसती हैं ऐसे
कि
प्रिया नेह नयनो में
बसी जा रही हैं…।

बारिश की बूंदें
बरसती हैं ऐसे
कि
प्रेम पाश प्रियतम
बधी जा रही हैं…।

बारिश की बूंदें
बरसती हैं ऐसे
कि
अधरों श्याम बंसी
बजी जा रही हैं…।

बारिश की बूंदें
बरसती हैं जैसे
कि
सावन की कजरी
सखी गा रही है…।

बारिश की बूंदें
बरसती हैं जैसे
कि
भौरे से कलियाँ
ठगी जा रही हैं…।

बारिश की बूंदें
बरसती हैं जैसे
की
गुलशन में रौनके गुल
कली खिल उठी हैं…।

बारिश की बूंदें
बरसती हैं ऐसे
कि
घूँघट में नव वधुलिका
छिपी जा रही हैं…।

बारिश की बूंदें
बरसती हैं ऐसे
कि
मधुरस से किशलय
पगी जा रही है…।

बारिश की बूंदें
बरसती हैं ऐसे
कि
मिलन की अंतिम
घड़ी आ रही है…।

अंजनीकुमार’सुधाकर’
बिलासपुर

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