काव्य : दंभ रहित हो जीवन – प्रियंका कुमारी जमशेदपुर

दंभ रहित हो जीवन

न जाने कौन घड़ी में आ जाये,
जीवन की उलझी साँझ ।
माया बंधन से होकर अलग,
जग पर्वत से; टूटे झरना बाँध।।

तिनका तिनका जोड़ कर ,
संचय धन वैभव भण्डार ।
तरुवर पात सब गिरता रहा,
न समझा ;ठूँठी पड़ी अब डार।।

मेला मौज रवानी सब कुछ ,
बन कर छाया है बंधन जाल ।
घायल हुआ मनुज मनुजता ,
सांसे थामें हो रहा बेहाल ।।

नाव कर्मों की तरण करती ,
लिख देती लेखा कर्तव्य का।
अहंकार का भक्षण करके,
सदैव बोध कराती गंतव्य का।।

सदा समर्पण सहज भाव को,
त्याग कटुता को निज मद से।
फैलाने मिलकर प्रेम पूँज सम,
करदें अर्पण परम निज कद से।।

छल दंभ पाखंड गुरूर सब ,
खण्ड – खण्ड कर जड़ से त्याग।
कर ग्रहण विनम्रता पूँजी अमर,
अज्ञान रहित कर ज्वलित आग।।

प्रियंका कुमारी
जमशेदपुर

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