काव्य : इन्द्र धनुष – आर्यावर्ती सरोज “आर्या ” लखनऊ

इन्द्र धनुष

कभी देखा है?
आसमान को धरती से मिलते?
हां! क्षितिज पर, सतरंगी
इन्द्र धनुष ने ली होगी अंगड़ाई,
अंक में बैठ उसके,
सघन काले मेध ने संवारे होंगे,
बन कुंडलित केस।
सूर्य रश्मियों की पड़ते ही
स्वर्णिम आभा,
दमक उठा होगा यौवन उसका।
इन्द्र ने जल बर्षा कर,
किया होगा प्रक्षालन,
सांझ भी अकुलाइ होगी
देखने को प्रणय बेला ।
नक्षत्रों ने मिलकर मयंक संग
की होंगी गुप्त मंत्रणाएं ।
ऐसे ही नहीं –
क्षितिज की गोद में,
इतराया होगा इंद्र धनुष।।

आर्यावर्ती सरोज “आर्या ”
लखनऊ ( उत्तर प्रदेश)

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