

लघुकथा
बेरंग लिफ़ाफ़ा
आज डाक में आ ही गया बेरंग लिफ़ाफ़ा …..भारी दिल से आंसुओं को रोकती हुई रमा ने लिफ़ाफ़ा लिया और कमरे में जा कर सिसकने लगी ! बेरंग लिफ़ाफ़े का मतलब माँ नहीं रही …बाबाके मरने के बाद भाई बहन के संबंधों में दरार पड़ गई ।भाई रमा के साथ बाबा की जायदाद बाँटना नहीं चाहता था ,जो माँ और रमा के पति को मंज़ूर नहीं था,नतीजा बहन को परिवार से ही बेदख़ल कर दिया गया ।
रमा माँ की ख़ैरियत जानने के लिये पत्र लिखती पर कभी कोई जवाब नहीं आता ।
गाँव में रहने वाली अम्मा को फ़ोन करना या पत्र पढना कहाँ आता था …. दो बरस तक रमा ख़त लिख कर पता करने की कोशिश करती रही ,इस आस में कि भाई का दिल शायद बहन के स्नेह को समझ पाये ,पर कोई जवाब नहीं आया ।हार कर छः महीने पहले ख़त के साथ एक बेरंग लिफ़ाफ़ा केवल पता लिख कर भेज दिया ,जिसमें रमा ने लिखा कि अगर अम्मा को कुछ हो जाये तो इसे मुझे पोस्ट कर देना ।
आज बेरंग लिफ़ाफ़ा रिश्तों की सच्चाई बता रहा था ,धन दौलत की चमक के आगे हर रिश्ता कैसे बेईमानी हो गया ….शायद कान्हा ने एक ही कंस को दंडित किया , अनेक अभी भी ज़िन्दा है ….।
–कुन्ना चौधरी
जयपुर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।

ओह! कितनी सटीक! सधी हुई लघुकथा!