

जन्म दिवस पर विशेष : दृढ़प्रतिज्ञ व्यकितत्व के धनी डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6जुलाई1901 को कोलकाता के भवानीपुर में नामचीन बंगाली परिवार में हुआ था, उनके पिता का नाम आशुतोष मुखर्जी और माता का नाम श्रीमती जोगमाया था, आशुतोष मुखर्जी कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति थे, वहीं मां श्रीमती जोगमाया धार्मिक आस्थाओं से ओतप्रोत महिला थी, श्यामा प्रसाद जी के तीन भाई और तीन बहने थी, मुखर्जी एक भाई राम प्रसाद मुखर्जी कोलकाता उच्च न्यायालय में न्यायाधीश थे।
हमारे मुल्क में अनेक ऐसी शख्सियत हुई है जिन्होंने भारतीय संस्कृति, सभ्यता और अखंडता की रक्षा के लिए अनेक आधार भूत कार्य किए, डाक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ऐसी ही शख्सियत थे, जिन्होंने हिन्दुस्तान के आजाद होने से पहले और आजाद होने के बाद भी भारत के विविध पक्षों का विकास करने और भारतीय संस्कृति के हिसाब से भारत को डालने के लिए अथक प्रयास किए।
श्यामा प्रसाद की प्रारंभिक शिक्षा मित्रा इस्टिइटूयूट कोलकाता में हुई थी, वे बाल्यकाल से ही कुशाग्रबुद्धि के मेधावी छात्र थे,मित्रा इस्टिइटूयूट से छात्रवृति लेकर मोंटेक परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने सन् 1917मे प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया, सन् 1921मे उन्होंने बीए आॅनर्स की परीक्षा अंग्रेजी विषय के साथ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की, हालांकि उस समय विश्व विद्यालय स्तर पर अंग्रेजी भाषा का दबदबा था, लेकिन देशप्रेम की अटूट भावना ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी को अंग्रेजी विषय पढ़ने से रोक दिया,वे इस हकीकत को भलीभांति जानते थे कि अंग्रेजी भाषा को प्रोत्साहन देने का मतलब है अपनी मातृभाषा हिंदी और संस्कृति को भूल जाना, देशभक्त होने का परिचय देते हुए उन्होंने एम ए अंग्रेजी भाषा के स्थान पर भारतीय भाषा को अपना विषय बनाया, वर्ष 1922मे एम ए की तालीम हासिल करने के दौरान ही उनका विवाह सुधा देवी से हो गया था, यह विधि की विडंबना ही है कि वैवाहिक जीवन के मात्र 12वर्ष बाद ही उनकी पत्नी का देहान्त हो गया, इसके पश्चात उन्होंने पुनः विवाह करने से इंकार कर दिया, और अपना शेष जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया, डाक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारत को पराधीनता, अन्याय , असमानता और शोषण से मुक्त कराने और देश के चौमुखी विकास के लिए आजीवन प्रयत्नशील रहे,वे बिना किसी संकोच के कहते थे कि भारत की सच्ची आजादी भारतीयों को बिना भारतीय संस्कृति और आदर्शों के मुताबिक जीने का अवसर और प्रोत्साहन देने में है।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी विधाथी जीवन में अपनी कक्षा में सदैव उच्च अंकों के साथ उत्तीर्ण होते रहे, साथ ही जब वे विधालय स्तर में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, तभी उन्होंने आगे की कक्षाओं में एम ए और बी ए की पुस्तको को पढ़ डाला था,उनकी जिज्ञासु प्रवृति उनके लिए हर विषय को सहज बना देती थी, विश्व विद्यालय में भी उनकी ख्याति एक मेधावी छात्र के रूप में फ़ैल गई थी, इसी वजह से उन्हें प्रेसीडेंसी कॉलेज की पत्रिका का महासचिव बना दिया गया, इतनी छोटी आयु में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी, सन् 1924मे में उन्होंने वी एल परीक्षा उत्तीर्ण की मुखर्जी ने डिलीट और एल डी की उपाधि भी प्राप्त की 1926मे वह विकास इन इंग्लैंड में काम करने लगे, वह रहते हुए उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के विश्व विद्यालयों के सम्मेलन में कोलकाता विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया, जिससे उन्हें एक श्रेष्ठ शिक्षक के रूप में जाना जाने लगा, सन् 1934 में महज 33वर्ष की आयु में कोलकाता विश्वविद्यालय के वाईस चांसलर बने , इससे पहले इतनी कम आयु में कोई भी व्यक्ति इस उच्च पद पर नहीं पहुंच सका था,वह भी ब्रिटिश सरकार के शासन काल में ,कुलपति बनने से उन्हें शिक्षा के संबंध में अपने मकसद और आदर्श को साकार करने का अवसर प्राप्त हुआ,वह प्रगतिशील शिक्षा योजनाओं के लिए आज भी याद किया जाता है, श्यामा प्रसाद अपनी बुद्धि, चातुर्य, दूरदर्शिता और कर्तव्यनिष्ठ के कारण एक शिक्षाविद के साथ साथ भारतीय आदर्श की रक्षा करने वाले व्यक्तित्व के लिए जाने जाते हैं, आजादी प्राप्ति से पहले भारत में अंग्रेजी शासन होने के बावजूद भी उन्होंने तत्कालीन परिस्थितियों में प्रतिभाशाली ढंग से कार्य करके विधानमंडलों में अपना सिक्का जमा लिया, सन् 1929मे उन्होंने बंगाल विधान परिषद में कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में कोलकाता विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया, बाद में वह वीर सावरकर की प्रेरणा से सन् 1939हिन्दू महासभा के कार्यवाहक अध्यक्ष बने, भारत के आजाद होते ही अगस्त 1947मे गांधी जी ने श्यामा प्रसाद को प्रथम राष्ट्रीय सरकार में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया वे मुल्क में उत्पन्न होने वाली समस्याओं को भलीभांति समझते थे, इसलिए देश के महत्वपूर्ण इस वजह से देश के महत्वपूर्ण औधोगिक और आर्थिक समस्याओं को समझने की उनकी शक्ति पर भरोसा करते हुए उन्हें उधोग एवं पूर्ति मंत्रालय का प्रभारी बनाया गया, पंडित जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में औद्योगिक नीति की नींव श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने ही रखी थी, उन्होंने ने ही भारत में तीन विशाल औधोगिक उपक्रमों की आधारशिला रखी ।
केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के पश्चात् डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारतीय एकता और परंपराओं के संरक्षण के रूप में प्रसिद्ध हुए , उन्होंने 21अकटूबर को अखिल भारतीय जनसंघ की स्थापना की,और इसके प्रथम अध्यक्ष बने,डा मुखर्जी बचपन से ही सादा जीवन उच्च विचार की युक्ति पर भरोसा करते थे, स्वास्थ्य शरीर और सदैव आडंबर हीन स्वभाव के कारण वे बड़ी सहजता से सबके स्नेह के पात्र बन जाते थे, कुलपति के परिवार में जन्म लेने और हर प्रकार के संसाधन संपन्न होने के बाबजूद भी उन्होंने सदैव अंग्रेजी पहनावे की अपेक्षा धोती कुर्ता को ही वेशभूषा के रूप में अहमियत दी , मुखर्जी ने ही कश्मीर को विशेष दर्जा देने और पृथक झंडा रखने का सबसे पहले विरोध किया था, उन्होंने ही कश्मीर को लेकर नारा दिया एक देश दो विधान , दो प्रधान दो निशान नहीं चलेंगे।
–मुकेश तिवारी
स्वतंत्र पत्रकार
ग्वालियर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
