काव्य : कैसा कैसा पानी रे ! – सुरेश गुप्त ग्वालियरी विंध्य नगर बैढ़न

कैसा कैसा पानी रे !

कितना पानी कैसा पानी?
रंग दिखावत पानी रे!
खेत में बरसा अमृत पानी,
कुएँ में राहत पानी रे!!
ताल तलैया मछली, पानी,
झोपड़ आफत पानी रे!!
छुट्टी लेकर पिया पधारे,
सजनी चाहत पानी रे!!
गौने की चिट्ठी आई है,
मीठा दावत पानी रे!!
पर्वत पहाड़ नदी सहेजे,
सौंदर्य विरासत पानी रे!!
पिया मिलन मे लगता जैसे,
आग लगावत पानी रे!!

सुरेश गुप्त ग्वालियरी
विंध्य नगर बैढ़न

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