लघुकथा : सोच – उर्वी वानया सिंह मुजफ्फरनगर

लघुकथा

सोच

भाव्या दीदी हमारे घर पर आई हुई हैं, उनकी शादी को ज़्यादा समय नहीं हुआ है, बस पिछले महिने ही उनकी शादी हुई। चाय पीते हुए मम्मी ने पूछा-“और बताओ कैसी बीत रही शादी के बाद की ज़िंदगी?”

“चाची, मेरे पति मुझसे इतना प्यार करते हैं कि उन्होंने अपने माता-पिता तक को मेरी खातिर छोड़ दिया।“

मम्मी ने पूछा-“कैसे, क्यों?”

भाव्या दीदी ने बताया-“मेरे पापा ने उन्हे गाड़ी और मकान उपहार में दे दिया, अब वे अपने माता-पिता को छोड़ पापा के दिये मकान मे मेरे साथ रहते हैं।“

“तुम्हारे पति तो इकलौते हैं न अपने परिवार में?”- शेफाली ने यूं ही पूछ लिया।

उन्होंने बोला-“शेफाली! तुम्हें भी इतना प्यार करने वाला लड़का मिले जैसे मुझे मिला हैं, सच में मैं बहुत ख़ुशनसीब हूँ।“

शेफाली ने बोला-“नहीं दीदी! मुझे ऐसी बददुआ मत दो। मुझे ऐसा लड़का नहीं चाहिए जो गाड़ी और एक मकान के लिए अपने माता-पिता को छोड़ सकता हैं वह कल किसी और चीज़ के लिए मुझे भी छोड़ देगा। मुझे तो हरगिजऐसा जीवनसाथी नहीं चाहिए।“

“……”

“और आप ख़ुशनसीब नहीं हो, ऐसी किस्मत को मैं बेहद खराब मानती हूँ, ऐसे पति को पाकर आपको खुश नहीं होना चाहिए बल्कि आपको तो ऐसी किस्मत पर रोना चाहिए।“

भाव्या दीदी कुछ उदास हुई और चली गयी ये बोलकर कि मुझे कुछ काम है। उनके जाने के बाद मम्मी ने शेफाली को कहा-“ शेफाली, ऐसे किसी को बोलते हैं क्या? जाने भाव्या क्या सोचेगी?”

शेफाली ने कहा-“मम्मी! हमारा समाज कैसा था, अब किस दिशा की और जा रहा है, एक समय ऐसा था श्रवण कुमार अपने माता-पिता को तराजू में लेकर तीर्थ-यात्रा कराने ले गए थे और एक आज के लड़के, जो गाड़ी और मकान के लिए अपने माता-पिता को छोड़ रहे हैं और लड़की उन पर गर्व कर रही है? देखो न- पुराने समय में बहु अपने सास-ससुर के सामने बोलती तक नहीं थी और आजकल आते ही अलग होने की बात करने लगती हैं। मैं ये नहीं बोल रही कि ग़लत को सहो लेकिन किसी के साथ ग़लत भी तो मत करो।“

मम्मी शांत मन से शेफाली का चेहरा देखती रही, शेफाली ने आगे कहा-“ मम्मी, मेरे साथ की लड़कियाँ बोलती हैं- अगर उनको उनके मम्मी-पापा को अपने साथ रखने का हक मिल जाए तो वृद्धाश्रम बंद हो जाए, परंतु मुझे ऐसा लगता हैं- वृद्धाश्रम तब बंद होंगे जब लड़कियाँ अपने सास-ससुर को ही माता-पिता समझ उनके साथ अच्छे से रहना शुरू कर दें।“

मम्मी के चेहरे के भाव बता रहे थे कि उन्हें अपनी शेफाली पर गर्व का अनुभव हो रहा है, शेफाली के चेहरे पर भी कुछ कुछ मम्मी जैसे ही भाव आने लगे।

उर्वी वानया सिंह
मुजफ्फरनगर

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