आर्य समाज क्या है ? – गोपाल मोहन मिश्र दरभंगा , बिहार

आर्य समाज क्या है ?

सबसे पहले जानते हैं कि आर्य समाज क्या है। आर्य शब्द का मतलब ही होता है “श्रेष्ठ”। इस तरह से आर्य समाज का मतलब हुआ, श्रेष्ठ और प्रगतिशील लोगों का एक समाज। इस समाज के अंतर्गत ऐसे व्यक्ति आते हैं, जो वेदों के अनुकूल चलने की कोशिश में लगे रहते हैं। इसके साथ ही ये अन्य लोगों को भी इस मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। आप आर्य समाज के जितने भी नियम या सिद्धांत देखेंगे, आप पाएंगे कि ये सारे के सारे वेदों पर ही आधारित हैं। इनके जो आदर्श हैं वो श्रीकृष्ण और मर्यादा पुरुषोत्तम राम हैं। इसकी स्थापना महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने १८५७ में की थी। इनकी बहुत सारी मान्यताएँ हैं, जैसे कि आर्य समाज सच्चे ईश्वर की पूजा करने को कहता है।
हाल के वर्षों तक उपनयन, विवाह व श्राद्ध कर्म आदि अनुष्ठानों को पारंपरिक तरीके से ही कराया जाता था। लेकिन अब इन संस्कारों को कराने के लिए लोग आर्यसमाज की शरण लेने लगे है। इसके लिए आर्य समाज द्वारा अपनाई जाती वैदिक रीति व विवाह में प्रमाण पत्र मिलने का कारण प्रमुख है। विदित हो कि आर्य समाज संस्था तमाम आडम्बर से दूर रहकर कार्य करती है। वैदिक मान्यता विधि के अनुसार बिना तामझाम के श्राद्ध संस्कार मात्र तीन दिन में संपन्न हो जाता है। इसलिए शिक्षित समाज के लोग आर्यसमाज की ओर आकर्षित हो रहे हैँ।

आर्य समाज में विवाह कैसे होती हैं ?

आर्य समाज में हिंदू रीति-रिवाज से ही विवाह होती हैं। यहाँ भी अग्नि के सात फेरे दिलवाए जाते हैं। इसके बाद एक मैरिज सर्टिफिकेट जारी किया जाता है। आर्य समाज से होने वाली शादियों को आर्य समाज मैरिज वैलिडेशन १९३७ और हिंदू मैरिज एक्ट १९५५ के तहत मान्यता देने की बात होती है। इसमें दूल्हे की उम्र २१ साल से अधिक और दुल्हन की उम्र १८ साल से अधिक होनी चाहिए।
आर्य समाज मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखता है, परंतु आर्य समाज को हिंदू धर्म का ही एक अंग माना जाता है। इसमें हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख समुदाय जैसी परंपराएँ होती हैं। वहीं, आर्य समाज में कोई भी हिंदू व्यक्ति किसी भी जाति के व्यक्ति से विवाह कर सकता है, लेकिन आर्य समाज में मुस्लिम, ईसाई, पारसी और यहूदी विवाह नहीं कर सकते हैं।
यहाँ भी विवाह के लिए कुछ प्रक्रिया तय की गई है। इसके अनुसार, विवाह करने वाले जोड़े को पहले आर्य समाज ऑफिस में रजिस्ट्रेशन कराना होगा। दोनों पक्षों को हलफनामा देना होता है। दोनों के दस्तावेजों को देखने के बाद उनका विवाह आर्य समाज मंदिर में कराई जाती है। इसके बाद एक मैरिज सर्टिफिकेट जारी किया जाता है। हालांकि, इस सर्टिफिकेट का मतलब ये नहीं होता है कि विवाह को कानूनी अधिकार और मान्यता मिल गई है। कानूनी तौर पर विवाह को तभी माना जाता है, जब विवाह को एसडीएम कोर्ट में रजिस्ट्रेशन कराया जाए। सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता चंद्र प्रकाश पांडेय कहते हैं कि आर्य समाज में विवाह होने के बाद आपको हिंदू मैरिज एक्ट के तहत इसे रजिस्टर करवाना चाहिए। एसडीएम के यहाँ विवाह रजिस्टर होने के बाद कानूनी तौर पर आपके विवाह को अधिकार मिल जाएगा। 

आर्य समाज में यज्ञोपवीत

प्रत्येक जाति में शरीर , मन , बुद्धि और आत्मा की शुद्धि तथा विकास के लिये विभिन्न प्रकार के संस्कारों का विधान किया जाता है । संसार की सर्वप्राचीन और सर्वाधिक सभ्य एवं सुसंस्कृत आर्य जाति ने भी अपने प्रत्येक सदस्य के लिये जिन संस्कारों की व्यवस्था की है , उनमें यज्ञोपवीत का विशेष महत्व है । मनुष्य की योनि अन्य प्राणियों की अपेक्षा श्रेष्ठ मानी गई है, क्योंकि कर्त्तव्य तथा धर्म के प्रति मनुष्य में जैसी उत्तरदायित्व की भावना पाई जाती है, वैसी अन्य प्राणियों में नहीं मिलती । संसार में जन्म लेते ही मनुष्य अनेक ऋणों से बंध जाता है । उसका प्रथम ऋण तो जन्मदाता माता पिता के प्रति होता है जिन्होंने उसे जन्म दिया है । यज्ञोपवीत का प्रथम सूत्र इसे धारण करने वाले को पितृऋण का सदा स्मरण कराता है । यज्ञोपवीत ग्रहण करते समय हमें यह ध्यान रखना होगा कि जिन माता पिता ने हमें जन्म दिया है, हम उनकी सेवा करें तथा उनके द्वारा बताये गये आदर्शों पर चलें । 

आर्य समाज में श्राद्ध

आर्य समाज की मान्यता के अनुसार मृत व्यक्ति का नहीं, बल्कि जीवित व्यक्ति का श्राद्ध किया जाता है। इसके हिसाब से श्राद्ध का मतलब होता है अपने माता पिता, गुरुजन ( जिन्होंने व्यक्ति को शिक्षा प्रदान की है, उन्हें सारे संसाधन प्राप्त करवाएँ ) के प्रति श्रद्धा।

आर्य समाज में श्राद्ध के नियम

आर्य समाज में ये माना जाता है कि जितनी जल्दी शोक से दूर हो जाएँ, उतना बेहतर है। इसीलिए इसके अंतर्गत तीसरे दिन ही शांति पाठ सम्पन्न करा दिया जाता है। इसके साथ ही जो भी आचार्य होते हैं, जो पाठ करवाते हैं या फिर संस्कार करवाते हैं, वो लोग कोई भी शुल्क की मांग नहीं करते हैं। उन्हें जो भी श्रद्धा से दे दिया जाता है, वो उसी में खुश हो जाते हैं।

आर्य समाज मृत्यु के बाद मुंडन क्यों

जब एक बच्चा जन्म लेता है तो उसके बाद घर में सूतक लग जाता है, ठीक वैसे ही जब किसी की मृत्यु होती है तो भी घर में सूतक लगता है। ऐसे में घर में अशुद्धि या अपवित्रीकरण रहता है। इसी को दूर करने के लिए मुंडन करवाया जाता है। इसके अलावा इसके पीछे एक और महत्व है, जो कि स्वच्छता से जुड़ा हुआ है। मृत्यु के बाद मुंडन इसलिए भी कराया जाता है, क्योंकि मृत्यु के बाद शरीर में सड़न शुरू होने लगती है और बहुत सारे जीवाणु शरीर में अपना बसेरा बना लेते हैं। ऐसे में रिश्तेदार और परिवार के सदस्य शरीर को कई बार छू लेते हैं, श्मशान तक ले जाने के लिए। इसीलिए उनमें जीवाणु के जाने का खतरा हो जाता है।
अंतिम संस्कार के बाद परंपरागत रीति से एकादशा व तेरहवीं संस्कार में लोगों को १३ दिन तक समय देना होता है। इसी के साथ इसमें खर्चा भी काफी हो जाता है। आर्यसमाज के द्वारा शांति पाठ अधिकतम तीसरे दिन करा दिया जाता है। आर्य समाज के पूर्व प्रधान रामदेव अग्निहोत्री बताते हैं, मान्यता है कि शोक से जितनी जल्दी दूर हो जाएँ उतना ही अच्छा होता है। इसलिए तीसरे दिन शांति पाठ करा दिया जाता है।

आर्य समाज के आचार्य नहीं लेते दक्षिणा

आर्य समाज के पूर्व प्रधान बताते हैं कि आर्य समाज के आचार्य समाज सेवा को आंदोलन के रूप में लेते हैं। इसके आचार्य संस्कार या प्रवचन आदि का कोई शुल्क नहीं लेते है। श्रद्धा से जो भी यदि दे दिया जाता है, तो उसे स्वीकार कर लेते हैं।

गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा , बिहार

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