

अतीत का झूला
उम्र की अंतिम सीढ़ी पर
यूं उदास बैठ कर
अक्सर ही
किसी उम्रदराज का मन
अतीत के झूले में
झूलने लगता है….।
आने लगते हैं याद उसे
पहली दूसरी तीसरी और
चौथी सीढ़ी के
सारे हमसफर….
जो एक एक करके
नियति के आदेश से
उससे बिछड़ते चले गए…..।
एक मुकाम पर आकर तो
अटूट बंधन में बंधे रिश्ते भी
मुंह फेर लेते हैं…..।
वैसे
तन्हाइयों के अंतिम पलों में
व्यक्ति के पास
सिवाय
स्मृतियों के
बचता ही क्या है….।
जीवन के दरख़्त से बंधे
अतीत के झूले ही तो
बहलाते हैं उसका मन….।
इनकी पींगे ही मिटाती हैं
उसके मन की थकन….।
जरा संजीदगी से
ध्यान रखें
कहीं कोई आपसे
यादों के साथ जीने का
हक भी न छीन लें….।
काट ले जाए
जीवन के पेड़ पर बंधा
स्मृतियों का झूला….।
ऐसा हुआ तो
इस खुदगर्ज दुनिया में
आप नितांत अकेले रह जाएंगे
कभी पनप नहीं पाएंगे…..।
–चरणजीत सिंह कुकरेजा
भोपाल

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।

Sundar rachna.👏👏👏