

इक आग जल रही है
इक आग जल रही है बराबर-बराबर
तुम जल रहे हो, यहां मै जल रहा हूँ।
धुआं उठ रहा है, दिलों मे बराबर
न तुम कह रहे हो, न मै कह रहा हूँ।।
रफ्तार दिल की दिल को पता है
धकधक-धकधक सा चल रहा है
कही शोर है और कही है नीरवता
तुम चल रहे हो संग मै चल रहा हूँ
धुआं उठ रहा है, दिलों मे बराबर
न तुम कह रहे हो, न मै कह रहा हूँ
बहुत है भयानक आंगे का मंजर
यूं लग रहा चल, सकते हैं खंजर
हाथो को हाथो में थामे हुए है
तुम डर रहे हो मै भी डर रहा हूँ
धुआं उठ रहा है, दिलों मे बराबर
न तुम कह रहे हो, न मै कह रहा हूँ
–जगन्नाथ विश्वकर्मा “पृथक”
मकरोनिया सागर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
