काव्य : वक्त का मान, वक्त का सम्मान – कर्नल आदि शंकर मिश्र, आदित्य लखनऊ

वक्त का मान, वक्त का सम्मान

मानव जीवन में मित्र हमेशा
मिलते और बिछुड़ते रहते हैं,
वैसे ही वक्त सदा इस जीवन में,
उतार चढ़ाव ले बदलते रहते हैं।

वे अति भाग्यवान होते हैं जिनके
मित्र जीवन भर नहीं बदलते हैं,
वे सौभाग्यशील बड़े होते हैं,
जिनके वक्त एक से रहते हैं।

न्यायाधीश निर्णय करता है,
पर दिखलाई न्याय नहीं देता,
वक्त अगर ज़्यादा लग जाये,
उस याची से न्याय नहीं होता।

यह जीवन वक्त का है ग़ुलाम,
इसलिए वक्त का मान करो,
वक्त वक्त की बात होती है,
इसलिए इसका सम्मान करो।

जब आत्मविश्वास से पूर्ण व्यक्ति,
ऊँची पर्वत चोटी पैर तले ले आता है,
इरादे बुलंद कर शिखर चढ़ जाता है,
उसका सिर गर्व से ऊँचा हो जाता है।

परिवार, रिश्तेदार, मित्र, स्वास्थ्य
और वक्त का कोई मूल्य नहीं होता,
किंतु जब हम इन्हें खो देते हैं तब
इनका अनमोल मोल पता चलता।

समुचित महत्व हर पल इनको देना,
समाज के स्तम्भ व प्रतिबिंब यही हैं,
आदित्य वक्त के साथ साथ चलना,
अनमोल वक्त के कोई मोल नहीं हैं।

कर्नल आदि शंकर मिश्र, आदित्य
लखनऊ

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