लघुकथा : कपटी – हेमलता शर्मा भोली बेन इंदौर

लघुकथा

कपटी

ताई- “ये गुड्डी तो बहुत कपटी है, मेरे छोरे का इलाज कराया और पैसे मांग लिए; इनका तो मकान भी बन गया, इनके छोरे की सगई भी हो गई, पता नहीं इनके यहां सब अच्छा कैसे हो रहा है ? देख तो बहू मैं तुझे सुनाकर गुड्डी को कुछ बोलूं तो तू बुरा मत मानना। मुंह बिचकाते हुए गुड्डी की बड़ी मां (ताई) बोली।
बहू- “हां मम्मी जी गुड्डी जीजी की सरकारी नौकरी है, परन्तु अपने लिए कुछ नहीं लाते। हमारे बच्चों के लिए भी कुछ नहीं करते, इनकी तो तरक्की होती ही जा रही है, भगवान तो इन पर ही टूटमान है। ”
सास-बहू की बात सुन रही पड़ोसन ने कहा – “कैसे हो तुम लोग? भगवान से डरो! अस्पताल में जब तुम्हारा छोरा मरणासन्न पड़ा था, गुड्डी ने ही पैसा लगाकर उसको खड़ा किया और साल भर बाद पैसे मांग भी लिये तो क्या हुआ? बहन-बेटी के पैसे खाकर नर्क में जाओगे क्या? उसके पापा बीमार, घर की आर्थिक स्थिति खराब, भाई का हाथ नहीं, जैसे-तैसे पढ़-लिखकर नौकरी कर रही है तो तुम्हें क्यों खटक रहा है। बड़ी मां का कौन-सा फर्ज निभाया तुमने? कभी एक कप चाय नहीं पिलाई, कभी एक साड़ी नहीं दी उसको फिर भी वो बहुत करती है सबके लिए। गुड्डी तो भोली है, कपटी तो तुम सब हो ! ” कहकर पड़ोसन चलती बनी और सास-बहू अपना-सा मुंह लेकर रह गई।

हेमलता शर्मा भोली बेन
इंदौर मध्यप्रदेश

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