मित्रों ने निभाई मित्रता : अद्भुत दुर्लभ नजारा श्रद्धांजलि का

मित्रों ने निभाई मित्रता : अद्भुत दुर्लभ नजारा श्रद्धांजलि का

नर्मदापुरम।
नर्मदा अंचल के सदी के गीतकार डॉ विनोद निगम इस स्थूल भौतिक जगत से अपने अनंत यात्रा पर चले गए पर वो हमारे आसपास शब्दों के रूप में हमारी यादों में सदैव रहेंगे | बाराबंकी में जन्मे डॉ विनोद निगम नर्मदा की लहरों के साथ रेत पर , जलधार पर अपना नाम बड़े प्यार से लिखते रहे और उनकी साहित्यिक यात्रा बढ़ती रही | उनके गीतों से गुजरना एक खूबसूरत यात्रा जैसा है | शब्दों की दुनिया में धूप की आवृत्ति है तो चांदनी की शीतलता मधुर मिठास के साथ लिए हुए हैं | ब्रह्मलीन डॉ विनोद निगम को भजनांजली के साथ श्रद्धांजलि दी गई | हारमोनियम पर संगतकार के रूप में कला साधक श्री राम परसाईं, तबले पर श्री सक्षम पाठक और स्वर दिया कुमारी रितु कुलश्रेष्ठ ने | श्रद्धेय विनोद निगम के गीतों को स्वयं कंपोज करके स्वरों के साधक डॉक्टर नमन तिवारी ने श्रद्धांजलि दी कंपोजीशन में साथ दिया शहर के ही कला साधक श्री कमल झा ने | उनका ही एक गीत ” कंचन भोर, कनेरी दोपहर ” जिसको कंपोज किया था स्वर्गीय श्रीमती जय श्री तरटे ने और स्वरों में बांधा कला मर्मज्ञ वनस्थली स्कूल की डायरेक्टर डॉक्टर अंजली मिश्रा ने |
उद्बोधन के साथ श्रद्धांजलि देते हुए डॉ सीताशरण शर्मा जी विधायक नर्मदापुरम् ने कहा की डॉक्टर विनोद निगम एक शिक्षक के साथ-साथ एक संवेदनशील , एक जिम्मेदार ऐसे नागरिक थे जिनके व्यक्तित्व में राष्ट्रीयता , समर्पण के भाव समाये हुए थे | उनका व्यक्तित्व सांस्कृतिक चेतना से सराबोर था |उन्होंने नर्मदा अंचल के साहित्य क्षेत्र को एक गरिमा प्रदान की |
पंडित गिरजा शंकर शर्मा जी पूर्व विधायक ने कहा कि उनका एक लंबा साथ डॉक्टर विनोद निगम के साथ रहा है | डॉ विनोद निगम को रिश्तो को गरिमा के साथ निभाना आता था | उनका जाना एक साहित्यिक क्षति तो है ही नर्मदा अंचल की पर साथ ही साथ सामाजिक क्षति और व्यक्तिगत क्षति भी है |
पंडित भवानी शंकर शर्मा जी के साथ उनका अटूट रिश्ता रहा है | उन्होंने कहा कि डॉ विनोद निगम को उन्होंने कभी मंदिर जाते नहीं देखा ,किसी के यहां कथा सुनते नहीं देखा पर वे जिंदगी को जीना जानते थे | वे छोटे-छोटे पलों को, छोटी-छोटी खुशियों को उत्सव में बदल डालते थे | उत्सव धर्मी , उत्सव प्रेमी संवेदनशील डॉक्टर विनोद निगम के जीने का भी अपना एक स्टाइल था | चटक रंगों से उन्हें प्यार था | उनकी कपड़ों की गरिमा देखते ही बनती थी | हर मौसम के बेहद खूबसूरत ड्रेसेस लखनऊ की चिकनकारी से सजे होते थे | उनके शाल ओढ़ने का भी एक खूबसूरत अंदाज था |
उनका पुण्य स्मरण करते हुए डॉक्टर के जी मिश्र ने कहा कि डॉ विनोद निगम एक ऐसे व्यक्ति थे जिनका किसी से किसी भी प्रकार का कोई मतभेद नहीं था | वे निष्काम योगी की तरह जिये और अपनी अंतिम यात्रा पर भी मुस्कुराते हुए चले गये | उनका किसी से भी द्वेष, मतभेद नहीं रहा |उन्होंने जब तक महाविद्यालय में काम किया पूरी निष्ठा के साथ किया | वे विद्यार्थियों को केवल पढ़ाते ही नहीं थे वे उनके मेंटर भी थे | उन्होंने विद्यार्थियों के व्यक्तित्व के संपूर्ण विकास के लिए जो कुछ जरूरी था वह सब किया | उन्होंने विद्यार्थियों को अभिव्यक्ति कैसे की जाती है ,यह सिखाया ,अभिनय करना सिखाया |
हरदा से आई डॉक्टर विनीता रघुवंशी ने अपने उद्बोधन में कहा इस समाज को वैसे ही संवेदनशील जिम्मेदार नागरिकों की जरूरत है ऐसे समय में डॉक्टर विनोद निगम का जाना एक अपूरणीय क्षति है | साहित्य का क्षेत्र सूना हो गया है |
उनके साहित्यिक कर्म के साथी डॉ ज्ञानेश चौबे ने उनकी संवेदनशीलता के संस्मरण सुनाये |
नर्मदा अंचल के साहित्यकार श्री अशोक जमनानी ने बहुत ही मार्मिक श्रद्धांजलि देते हुए अपने शब्दों में कहा यह शहर है पूछता लौट कर आओगे कब | यह दरो- दीवारें यह सड़क सब पूछ रही है लौट कर आओगे कब |
डॉ ओ. एन. चौबे ने कहा यह शहर ऋणी है डाक्टर विनोद निगम का कि उन्हीं के कारण बहुत बड़े – बड़े साहित्यकार इस शहर में आए और शहर वासियों ने उन साहित्यकारों को करीब से देखा भी और सुना भी जिनकी कभी कल्पना भी नहीं की जा सकती |
एक लंबे समय तक शासकीय गृह विज्ञान महाविद्यालय में डॉ विनोद निगम के साथी रहे अंग्रेजी के सेवानिवृत्त प्राध्यापक डॉ ज्ञानेंद्र पांडे ने उनके व्यक्तित्व की सारी विशेषताएं बताई | इटारसी से आए हिंदी के सेवानिवृत्त प्राध्यापक डॉ कश्मीर सिंह उप्पल ने कहा कि उन्होंने इस शहर को बहुत कुछ दिया है , हम सब को बहुत कुछ दिया है , अब हमारी बारी है कि हम डॉक्टर विनोद निगम को हाथ पकड़कर ,स्कूल – स्कूल ,कॉलेज – कॉलेज ,गलियों – गलियों , चौक चौबारों तक लेकर जाए | उनकी कविताओं से ,उनके साहित्य से इस शहर की फिजाओं को हम परिचित कराएं |
सुश्री दीपाली शर्मा ने उन्हें याद करते हुए कहा कि यदि आज वे स्वयं कविताओं की अभिव्यक्ति मंच पर कर पा रही हैं तो उसका श्रेय केवल और केवल डॉ विनोद निगम को है | उन्होंने ही मंच पर सबसे पहला काव्य पाठ करना सिखाया था |
उनके अभिन्न मित्र सुरेश उपाध्याय जी ने उन्हें महाकवि की उपमा दी और कहा के ऐसे लोग बिरले ही होते हैं | उन्होंने नव गीतों में नवाचार किया | वे लिखते थे , वे कहते थे जो कुछ हूं बस गीत – गीत हूँ | उनकी लेखनी में उनके व्यक्तित्व में सुर – ताल सबकुछ समाया हुआ था | यह कहना उपयुक्त ही होगा ” गतिमय चरण दृष्टि शिखरों पर गीत आस्था के अधरों पर “|
भावुकता के साथ भोपाल से आए श्री जयंत भारद्वाज ने, इटारसी से आये साहित्यकार श्री विनोद कुशवाहा ने ,शहर के पंडित गोपाल प्रसाद खड्डर ने उनके साथ बिताए हुए संस्मरण सुनाए |संगीत साधक श्री राम सेवक शर्मा ने उन्हें अपना अन्नदाता कहा | क्योंकि वे डॉ विनोद निगम के कारण ही शासकीय सेवा में आ पाये थे |
वरिष्ठ पत्रकार राजू जमनानी ने अाग्रह करते हुए एक निवेदन किया कि वे नर्मदापुरम कि जिस क्षेत्र में रहते थे उस पथ नाम विनोद कर दिया जाए | साथ ही उनका यह भी आग्रह रहा कि डॉ विनोद निगम शासकीय गृह विज्ञान महाविद्यालय में एक लंबे समय तक रहे हैं, शहर की ही नहीं महाविद्यालय की साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना में उनका बहुत बड़ा योगदान है | अतः शासकीय गृह विज्ञान महाविद्यालय में एक साहित्यिक गैलरी बनाकर उनकी प्रतिमा स्थापित की जाए और वह गैलरी उनको समर्पित करते हुए उसमें उनकी लिखी हुई पुस्तकों को रखा जाए | आभार डॉ संतोष व्यास ने प्रस्तुत किया |
इस संपूर्ण कार्यक्रम की खास बात यह थी कि यह कार्यक्रम डॉ विनोद निगम के अंदाज में ही संपन्न किया गया | वे सह मित्र भोज के विशेषज्ञ थे | कैसे अपने साथियों को सह भोज के लिए मनाया जाए उन्हें बखूबी आता था और इसीलिए उनके मित्र समूह ने उनके श्रद्धांजलि कार्यक्रम में भी सह मित्र भोज रखा |
पूरा आयोजन पंडित भवानी शंकर शर्मा के मार्गदर्शन में अरुण शर्मा , प्रशांत दुबे उर्फ मुन्नू ,अजय सैनी , संजय गार्गव की देखरेख में मित्र समूह के सहयोग से संपन्न हुआ |
अंत में.. ” कोई तो उठो दूर दूर तक फैलेे सागर की छाती पर पांव धरे “।

डॉ हंसा व्यास
नर्मदापुरम

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