लघुकथा : डिलेवरी – रीता गुलाटी ऋतंभरा चंडीगढ़

लघुकथा

डिलेवरी

फागुन मास का आरम्भ,और शीत ऋतु दबे कदमो से जाने को तैयार..मगर सुबह शाम की ठंड अभी भी थी भावी प्रसूता के लिये? रात भर से वो तड़फ रही थी..शायद नवजात शिशु आने को तैयार था.पास सोये पति डयूटी देकर आये गहन निद्रा मे थे। इधर अनुभवी आँखो वाली सासु माँ जान गयी थी मगर चुप थी.। भोर होते ही पतिदेव रोजाना की तरह अपनी नौकरी पर निकल चुके थे। प्रसव वेदना से तड़फती मोना को सासु माँ ने सरकारी अस्पताल ले जाना उचित समझा.।मगर ये क्या..उसने एक टीका लिखकर दे दिया ..और कहा..जाओ कल आना। रास्ते मे सासु माँ ने वो टीका लेकर मोना को लगवा दिया..शायद वो प्रसव वेदना को बढाने वाला था। तभी सासु माँ ने मोना से कहा..इधर तुम्हारा मायका निकट है..कल तो अस्पताल आना ही है..चलो वही चलते हैं..मोना कुछ न बोली..चुपचाप चल दी। थोड़ी देर मे जब वो मायके पहुँची तो उसकी माँ घर न थी.वो अपने भाई के घर गयी थी। छोटी बहन ने आगवानी की मगर शाम होने से पहले मोना की प्रसव वेदना दूने वेग से बढ़ गयी।शाम को मोना की माँ जैसे ही घर पहुँची.मोना की हालत देख कर .भाग कर अपनी निकटतम नर्स को घर बुला लायी। शाम छह बजकर दस मिनट पर नार्मल उसका बेटा उसकी गोद मे था।
आज डा.की कल होने वाली डिलेवरी की सूचना निराधार साबित हुई थी।

रीता गुलाटी ऋतंभरा
चंडीगढ़

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