काव्य : शादी पहले और अभी – चन्दा डांगी ,मंदसौर

शादी पहले और अभी

जानती ही नही थी लड़किया
शादी क्या होती है
माता पिता ने
जो चुन दिया वर
थमा दिया जिसके
हाथों मे हाथ
विदा हो गई उसी के साथ
लेकर माँ की एक सीख
इस घर से तुम्हारी
डोली उठी है
देखना मत पीछे मुड़कर
जैसे भी हो हालात
जिम्मेदारी से हटना नही
दुख, दर्द,पीड़ा सब झेलकर भी
अर्थी तुम्हारी उस घर से ही उठेगी
लड़की खुशी खुशी सबकुछ निभाती
करती नही शिकायत
दहेज की आग मे जलती
कभी बेटी पैदा करने का
दंश झेलती
हालात से समझौता कर भी
जीवन मे खुशियाँ ढूंढ लेती
अब लड़की
स्वयं चुनती अपना वर
देखती,परखती
फिर भी जेहादियों को
पहचान नही पाती
अपना सच्चा प्यार समझती
कुछ दिन साथ रहती
माँ-बाप की एक न सुनती
शादी के लिए
माँ-बाप को मजबूर करती
कुछ दिन भी नही बीतते
हो जाता है तलाक
स्वयं की पसंद पर किससे करे सवाल
काटी जाती, फेंकी जाती
फांसी के फंदे पर झूल जाती
बन जाती किसी के हवस का शिकार
जिसको नही भरोसा
माँ-बाप के तजुर्बे का
वो कैसे करे किसी और से
समझौता
परिवार का सुख
समझ ही नही पाती
इधर उधर की ठोकरे खाती
जीवन का सुख कहाँ भोग पाती ।

चन्दा डांगी
रेकी ग्रैंडमास्टर
मंदसौर मध्यप्रदेश

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