कहानी : बावरी – रश्मि लहर लखनऊ

कहानी

‘बावरी’

प्रयागराज के सुप्रसिद्ध हनुमान मन्दिर में भीड़ लग गई थी …पूरे मोहल्ले में उसकी ही बातें हो रही थीं..जिसको देखो वह उसी की बातें कर रहा था ….और तो और उसका एक नाम भी पड़ गया था ‘बावरी’।
बच्चे भी खुसुर – पुसुर कर रहे थे…कितनी सुंदर है न …पढ़ी–लिखी भी लगती है। गूंगी है शायद…नहीं, नहीं! सदमा लगा है उसको! जितने मुँह उतनी बातें …।
मैं मायके आई तो मुझसे ज्यादा परिवार में ‘बावरी’ की चर्चा होने लगी…।
लोग छोटे बच्चों को घर के भीतर छुपाने लगे …कहीं आतंकवादियों की कोई साजिश न हो ..वगैरह वगैरह …
आदतन, दूसरे दिन प्रभातबेला में मैं नहा कर मन्दिर की तरफ चल दी…गंगा की पावन लहरें देख कर मैं अपना सारा तनाव भूल जाती थी। और वहीं एक कोने में बना यह मन्दिर मुझे आत्मिक शान्ति देता था। पूजा करके मैं ध्यान करने लगी…तभी लगा कोई माथा टेक रहा है …मैने आँख खोली…।
भक्ति में डूबी मैं, अचानक चौक पड़ी…
“अरे रूपाली तू ? ”
वह एकदम से भयभीत होकर दीवार में छुपने लगी।
मैंने धीरे से उससे कहा…
“डरो नहीं …मैंने तुम्हे पहचान लिया है । तुम इस अवस्था में कैसे ?”
और फिर उसने जो बताया, सुनकर मैं काँप उठी …
वह अनवरत बोलती जा रही थी …
“शादी के दो महीने के भीतर ही सास की मृत्यु से उसके ऊपर बड़े परिवार की पूरी ज़िम्मेदारी आ गई थी।
मायके में वह अपनी बुआ के साथ रहती थी। उनके कोई सन्तान नहीं थी। उन दोनों के पास अथाह सम्पत्ति थी ।
वह दोनों परिवारों की देखभाल में इतना मशगूल हो गई कि उसका पति आपराधिक क्रियाकलापों में संलग्न रहता है, यह उसको पता ही नहीं चला।
एक दिन जब उसके पति ने धृष्टता से यह कहा कि..
“सुनो! दरोगा का बिस्तर गरम कर दो तो मेरे ऊपर लगे सारे केस वो खत्म कर देगा ।”
तो वह सन्न रह गई !
“क्या कहा ?” वह एकदम से बिफर पड़ी …।
“खबरदार! जो दुबारा ऐसी बात कही तो..”
“तो? क्या कर लोगी?”
पति ने नशे से लाल अपनी आँखें दिखाते हुए पूछा!
उसने पास में रखा डंडा उठाया और चीखकर कहा …
“चमड़ी उतार के हाथ में धर दूॅंगी …अगर मेरी तरफ किसी ने आँख उठाकर भी देखा तो..”
उसका पति उसको घूरता हुआ चला गया ..।
तब उसने गौर करना शुरू किया कि उसके देवर और ससुर सब उस लीला में लिप्त थे ।
अब उसे अपने ही घर में डर लगने लगा था।
उसी बीच बुआ का भी देहांत हो गया ..।
लोग परिवार के बारे में इतना अच्छा – अच्छा बताते थे पर वह कैसे परिवार का हिस्सा बन चुकी थी …उसे ख़ुद समझ नहीं आता था …
एक महीने पहले रात को उसकी आँख खुली तो उसने कुछ कानाफूसी सुनी ..।
उसके ससुर उसके पति से कह रहे थे कि…
“आजकल कोरोना वाले पेशेन्ट्स को नर्सिंग होम में ही मरने के लिए छोड़ दिया जाता है । इसको कहीं दूर चलकर एडमिट करवा दो … इसके मायके की सम्पत्ति भी अपनी और यहाँ भी हम सब इसके बीमा का सारा पैसा लेकर ऐश करेंगे ….” चारो जोर-जोर से हँसने लगे …
वह घबराहट में घर से भाग निकली और अपने मायके के मन्दिर पहुँच गई …। उसको पता था कि उसके शराबी परिजन मन्दिर कभी नहीं जाएंगे।”
इतना बता कर वह फूट-फूटकर रोने लगी ।
मुझे उसकी इस हालत पर बेहद दुःख हुआ…।
स्कूल की टाॅपर …कालेज की टाॅपर.. इतनी अच्छी बच्ची आज इस हालत में!
मैंने उसे अपने गले से लगा लिया और उससे कहा कि “किसी को कुछ पता न चले।”
भाग्य से मैं ‘डिस्ट्रिक्ट जज’ के पद पर थी …
दूसरे ही दिन मैं उसको लेकर अपने ससुराल पहुॅंची। उसको स्नान करवाया, अपनी एक सुन्दर सी साड़ी पहनने को दी।
मेरा परिवार गाँव में रहता था …पति भी ट्रांसफरेबिल जाब में थे । मैने पहले पाॅंच दिन तक उसका भय ख़त्म किया तत्पश्चात डी.एम. से बात की … उसके तलाक के पेपर तैयार करवाए और दबाव डलवा कर जल्द ही उसका तलाक करवाया ।

आज वह ‘बावरी’ अपने मायके के घर में ‘रुपाली स्मृति संस्थान’ चला रही है तथा एन.जी.ओ. से जुड़ कर समाज के दुर्बल वर्ग का सहारा बन गई है ।

रश्मि लहर
लखनऊ

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