

बच्चे और वृद्ध माँबाप
आज के समाज में अधिकांश घरों में यह समस्या बनी हुई है , मां बाप को साथ न रखना । या रख लिया तो सम्मान ना करना।
अच्छी शिक्षा और प्रगति की दौड़ मे सम्मिलित माँ बाप की यही नियति हो शायद ….। जिन माँ बाप ने महत्वकांक्षी बनकर बच्चों को बड़ा आदमी बनाने का एडी से चोटी तक का जोर लगाया हो …और वें बच्चे जब फिर लौटकर नहीं आते या आते हैं तो उन्हें माँ बाप नहीं भाते ।
ऐसे में वे माँ बाप तो बूढे होकर वृद्धाश्रम जाएंगे ही या फिर अकेले मरे खपेंगे।
भले आप सोचते रहें हमारे साथ ऐसा नहीं होगा ,मगर कहा नहीं जा सकता कब किसके साथ क्या हो जाए। एक से एक राजदुलारों ने मां बाप को नर्क में धकेला है, अनदेखा किया हुआ है। जाने कितने वृद्धाश्रम पटे पड़े हैं- माँ-बाप, दादा-दादी से ।
मेरा मानना है कि सरकारी स्कूल में ही पढ़ाएं सब अपने बच्चों को। उसे नवाब बनाकर मत पालिए। यथार्थ के धरातल पर रखकर बच्चों को पालिए।
साधारण ढंग से पालन पोषण कर सरकारी स्कूल में ही पढाइये। जिसे जो बनना है… वो वहीं से बनेगा, मेहनत से पढेंगे या आवारा बनेगे। जो नसीब होगा!
अपनी मेहनत की कमाई बच्चों पर लुटाकर उनके मोहताज मत होइए अन्यथा बुढापे में जाना तो वृद्धाश्रम ही है।
उन्हें आगे बढ़ाने की सोच और बडा आदमी बनाने की सोच भी हिंसा हो सकती है… जो हम सब पूरे समाज़ के साथ कर रहे होते हैं, गरीब अधिक गरीब और अमीर अधिक अमीर बस इन दो तबको के बीच जीवन फंसकर रह जाता है। मध्यम वर्ग का परिवार यानि बीच वाला तबके में जिंदा लोग भी मृतप्रायः से रहते हैं।
सब कुछ एक औलाद पे न्यौछावर कर देना – सेहत भी , पैसे भी , समय भी और ना जाने क्या क्या !कहां तक उचित कहां तक अनुचित इसका आभास तब ही होता है जब माँ बाप बुढ़े हो जाते हैं ।
उस वक्त जब बच्चा आपके पास लौटेगा कामयाब होकर तो …वह आपके पास लौटकर भी नहीं लौटेगा ,उसे अब मां बाप बोझ लगेंगे!
“कोई भी कामयाब पुरूष मां बाप के लिए पैदा ही नहीं होता ।
वह आपका होकर भी आपका नहीं होगा..उसकी वापिसी पर सिवा बिलबिलाहट के आपके पास और कुछ नहीं होगा।
मुकाबले की जिंदगी में एहसास मर जाते हैं ।
दिल में जगह बचती कहां होगी.
फिर भी यदि आगे बढ़ने की सोच के बिना बच्चे आनंद लेकर पढ़ाई करें…. शौक की चीजें करते करते अपनी रुचि को पहचानकर मनपसंद काम करें,तो कुछ और तरह का जीवन हो सकता है ।
हम मां-बाप ही बच्चों से सम्भावनाएं ही खत्म कर देते है , और उनको कॉम्पिटिशन के एक क्रूर मार्ग पर धकेल देते हैं।
फिर हम माँ बाप वही काट रहे होते हैं जो वह बो चुके होते हैं ।
– सुनीता मलिक सोलंकी
मुजफ्फरनगर उप्र

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
