

दो जून की रोटी
सबकी ये चाहत है बस दो जून की रोटी.
क्या क्या न दिखलाती है.दो जून की रोटी
नन्हीं सी आंखों में.बसे सपनों की आस में
करती वतन से दूर है.दो जून की रोटी।
क्या क्या न दिखलाती है.दो जून की रोटी
सहते हैं धूप. ताप.और बारिश की तल्खियां.
जब भूख की ज्वाला से न दबती हैं सिसकियाँ
तब चांद में भी दिखती है दो जून की रोटी
क्या क्या न दिखलाती है.दो जून की रोटी
जलती हुई सडकों पर नंगे पांच चलाती.
जमती हुई सी ठंड में दिन रात जगाती
मजबूर जिदगी का असल नूर है रोटी.
क्या क्या न दिखलाती है.दो जून की रोटी।
–पद्मा मिश्रा.
जमशेदपुर. झारखंड

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
