लघुकथा : चुहल – सुमन सिंह चन्देल मुजफ्फरनगर

लघुकथा
चुहल

सुनो जी,मेरी बेटियों को बिन बात डाँट डपट करने की जुर्रत भी मत करना, वरना कहे देता हूंँ मुझसे बुरा कोई न होगा। हाँ , नहीं तो…
बेटियों की शिकायत पर परदेश से पिता ने फ़ोन पर उनकी माँ को कहा।
“अच्छा और वो चाहे जो करें!”
मां ने पूछा।
“कुछ भी ग़लत न करेंगी बहुत प्यारी और समझदार हैं मेरी बच्चियां ।”
“और मैं ?”
स्त्री ने पूछा

“तुम…झल्ली!”
“जाओ कट्टी”
“बाय- बाय ”
स्त्री ने झूठ -मूठ नाराज़गी जताई।
सुनो प्रिय , मुझे कुछ जलने की बास आ रही है।
खनकती हँसी के साथ पुरुष ने कहा।

सुमन सिंह चन्देल
मुजफ्फरनगर

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