

वीरता की पहचान रानी दुर्गावती
रानी दुर्गावती वीरता की पहचान मानी जाती हैं।वे अपनी वीरता और साहस के लिए जानी जाती हैं । कभी भी किसी से ना डरने वाली वीरांगना दुर्गावती मुगल बादशाह अकबर के सामने भी कभी नहीं झुकी । रानी दुर्गावती अपना पूरा जीवन लड़ती ही रहीं । रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर, 1524 में उत्तरप्रदेश के बांदा के कालिंजर जिले में मशहूर राजपूत चंदेल सम्राट कीरत राय के परिवार में हुआ था । कहते है कि दुर्गावती का जन्म दुर्गाष्टमी पर होने के कारण ही इनका नाम दुर्गावती रखा गया। रानी दुर्गावती को बचपन से ही निशानेबाजी, तीरंदाजी, तलवारबाजी तथा घुड़सवारी करने का शौक था ।
रानी दुर्गावती की सुंदरता और वीरता के चर्चे से मुगल सम्राट अकबर भी काफी प्रभावित था । वह भी रानी दुर्गावती के धन-धान्य से परिपूर्ण राज्य पर अपना कब्जा जमाना चाहता था । अकबर ने रानी दुर्गावती को अपने अधीन होने के लिए कहा। लेकिन वीर रानी दुर्गावती ने अकबर को साफ इंकार कर दिया । इससे तिलमिला कर उसने आसफ खां को दुर्गावती से युद्ध करने का आदेश दे दिया | रानी दुर्गावती पर अकबर की सेना ने तीन बार आक्रमण किया लेकिन तीनों बार रानी दुर्गावती ने अकबर की सेना को बुरी तरह हराया । 1564 में उसने चौथी बार फिर से रानी दुर्गावती के राज्य पर आक्रमण कर दिया और छल-कपट के साथ गढ़ को चारों तरफ से घेर लिया | एक एक कर रानी दुर्गावती के घुड़सवार युद्ध में वीरता से लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त होते गए । तभी तीरों की एक बौछार रानी दुर्गावती के हाथी पर लगी। महावत भी मारा गया | फिर एक तीर रानी दुर्गावती के गले पर लगा। रानी संभलती इससे पहले ही फिर एक तीर उनके हाथ में लगा । असहनीय पीड़ा से रानी दुर्गावती के हाथ से धनुष छूट गया। दुर्गावती ने जब देखा कि अब मुगल सैनिक उनके पकड़ लेंगे । तब स्वाभिमानी रानी दुर्गावती ने मुगलों के हाथ जिन्दा ना आने के लिए , जल्दी से अपनी कमर में लगी कटार खींची । फिर उन्होंने जोर से ‘जय भवानी ’ का नारा लगाते हुए कटार अपने हृदय में उतार ली । वो दिन 24 जून 1564 था जब रानी दुर्गावती वीरता से मुगलों की सेना का सामना करते हुए वीरगति को प्राप्त हुई । इस तरह रानी दुर्गावती अपने राज्य की रक्षा के लिए आखिरी सांस तक साहस के साथ लड़ती रहीं और अपने प्राणों की आहूती दे दी।
-रीता सिंह
बेंगलुरु
कर्नाटका

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
