काव्य : वीरांगना रानी दुर्गावती ,आल्हा छंद – डॉ,सुषमा वीरेंद्र खरे ‘सरस’ सिहोरा,जबलपुर

वीरांगना रानी दुर्गावती

आल्हा छंद

वीरांगना बड़ी दुर्गा वती
कालिनजर में ली अवतार।
दुर्गा अष्टमी को जन्मी
दुर्गा नाम धरो परिवार।।

वीर पिता की बड़ी लाडली
बालपने से रही होनहार।
स्कूली शिक्षा के संग संग
चलाना सीख रही हथियार।

वारी उमर में शादी होगई,
दलपत शाह बने भरतार।
गोंडवाने के वे राजा थे ,
राज की सीमा फैली अपार।

राजारानी सुख से रह रहे ,
जन्मे सुत तब एक होशियार।
खुशी मना ही न पाए दोनों
दलपत सिंह गए स्वर्ग सिधार।।

पहाड टूट गया रानी के ऊपर,
दुख का नहीं है पारा वार,
पर हिम्मत न हारी रानी ,
राज काज ली तुरत सम्भाल।।
कुआ वावली ताल खुदाये
जनता को सुख देती हर हाल।।
अपने नाम पर रानी ताल ,
सखी के नाम पर चेरी ताल
आधार ताल है सेनापति को
जबलपुर के हैं जितने ताल।।

मदनलाल बनवाया अनोखा
गढ़ पर्वत पर ध्वज फहराय
वाजबहादुर ने करी चढ़ाई
रानी ने दी उसे करारी हार

पडी नजर फिर है अकबर की
राज हड़पने को चल दी चाल,
दूत भेजl सन्देशा देकर
हाथी भेंट दो हमें तत्काल

जब रानी इंकार करी है ,,
हमला किया मुगल ने आय
घिर गई रानी जब दुश्मन से ,
छाती में मारी खुद ही कटार,

बड़ी वीरांगन थी रानी दुर्गा
जग में नाम करी उजियार,
24 जून का वो दिन था,
गई रानी बही खून की धार।।
गाथा अमर हुई है जग में ,
महिमा गाता है संसार।
कोटि कोटि वंदन चरणों में,
दुर्गा देवी का थी अवतार।

डॉ,सुषमा वीरेंद्र खरे सरस
सिहोरा जबलपुर मध्यप्रदेश

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here