
तुझे खोजती ही निरंतर बही है
तन भी किया है प्रभु तुझको अर्पित
मन भी किया है प्रभु तुझको अर्पित,
तुम्हें कर दिया सारा जीवन समर्पित,
मेरे प्राणों में शामिल प्रभु तू कहीं है।
प्रभु तू तो है एक करुणा का सागर,
मैं बनी एक छोटी सी नदिया की धार,
छुपा ले न इसको ये माटी की गागर,
जो तुझे खोजती ही निरंतर बही है।
तन मन है प्यासा ये कैसी पिपासा,
वैभव न मुझको है अमृत की आशा,
प्रभु तुम समझ लेते अंतर की भाषा,
तेरे दर्शन की चाहत दिल को बड़ी है।
हृदय आज व्याकुल हुई रात काली,
सूरज की कब से न निकली सवारी,
बंसी की धुन आज फिर से सुना दे,
आज राधा तेरी बन के मूरत खड़ी है।
नीलम द्विवेदी,
रायपुर छत्तीसगढ़।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।