कहानी : असली हीरो – डॉ प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार टीकमगढ़

असली हीरो

रीमा ट्रेन में बैठी अपने ख्यालों में खोई हुई थी तभी स्टेशन आया। एक आर्मी वाला अपने बच्चों और पत्नी को हाथ हिलाते हुए ट्रेन में अंदर आ गया ।मगर यह क्या साथ वाला फौजी रोने लगा l,
तभी एक बूढ़े से चाचा जी जो सामने बैठे थे उन्होंने उससे पूछा क्या हो गया बेटा उसने अपने आंसू पोछ दिए और बोला कुछ भी नहीं ।
पर उसका दोस्त जो अभी-अभी अपने परिवार को हाथ मिला कर आया था कहने लगा चाचा जी आप सुनना चाहते हैं यह क्यों रो रहा है हम फौजी देश की रक्षा के खातिर अपने प्राण गवा देते हैं लेकिन चंद पैसों के लिए इस देश में रहने वाले अभिनेता जो कि किसी ना किसी बच्चे के दिल में बसे होते हैं जब यह एडवरटाइजमेंट करते हैं कि खेल खेलो मोबाइल पर तो बच्चे इनकी बातों में आकर अपने माता-पिता के भी बैंक बैलेंस खत्म करने लगते हैं ऐसा ही कुछ इनके बेटे के साथ हुआ बेटे को पढ़ने के लिए मोबाइल दिया था। लेकिन पता नहीं उसे कब खेल की लत लग गई जब एक दिन इसने पूछा कि मेरे व के अकाउंट से पैसे कहां गए तो बच्चे भी डर के मारे सुसाइड कर लिया। क्या आप ऐसे अभिनेताओं को नवांकुर पीढ़ी को खोखला करने वाला नहीं कहे हम बाहर तो लड़ सकते हैं मगर ऐसे व्यक्तियों का क्या। रीमा सब सुन रही थी सच देश के असली हीरो तो यह फौजी होते हैं लेकिन उनके साथ देश के अंदर ही धोखा
किया जाता है क्या यह जरूरी नहीं कि किसी प्रकार का भी विज्ञापन करने से पहले अभिनेता यह भी सोचे कि कहीं उनका बच्चा इस खेल में जुड़ जाए तब क्या होगा मगर नहीं चंद पैसों की खातिर यह विज्ञापन करते रहते हैं और नतीजा जो देश की रक्षा कर सकता है हर एक की चिंता करता है अपने बेटे को ना बचा पाया।
असली हीरो तो सैनिक होते हैं। चाचा जी निशब्द रह गए थे।

डॉ प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
टीकमगढ़

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