नागरिक पत्रकारिता : समस्या ग्रस्त रेलवे : उदासीन जन प्रतिनिधि – विनोद कुशवाहा

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समस्या ग्रस्त रेलवे : उदासीन जन प्रतिनिधि

– विनोद कुशवाहा

क्षेत्रीय सांसद , रेलवे सलाहकार समितियों के सदस्यों , रेलवे यूनियनों की निष्क्रियता के चलते रेलवे से जुड़ी समस्याओं में निरंतर वृद्धि होती जा रही है और हम हैं कि मूक दर्शक बने हुए हैं । किसी ट्रेन का किसी स्टेशन पर चुनाव तक के लिये अस्थायी स्टॉपेज करवा लेना इतनी बड़ी उपलब्धि नहीं है जिसका ढिंढोरा पीटा जाए । इटारसी में तो रेलवे से सम्बंधित समस्याओं का अंबार लगा हुआ है । फिलहाल बात अवरोधकों और बेरिकेड्स की । इटारसी देश का एक बड़ा और महत्वपूर्ण जंक्शन है । यहां पर प्रतिदिन लगभग 200 गाड़ियों का आना-जाना लगा रहता है । इन ट्रेनों से रोजाना हजारों यात्री देश के कौने-कौने में आते-जाते हैं । सफर में तकलीफ तो होती है । सफर में ही क्या घर से निकलो और तकलीफों का दौर शुरू हो जाता है । इटारसी रेलवे स्टेशन को ही लीजिए । प्लेटफार्म पर जाने और वहां से निकलने के लिये यात्रियों को करीब 70 अवरोधकों को पार करना पड़ता है । इनमें 68 तो लोहे के पाईपों के अवरोधक हैं । जिनमें से एक बार में एक ही व्यक्ति निकल सकता है । आप अंदाज लगाईये कि सामान सहित आने-जाने में यात्रियों को कितनी परेशानी होती होगी । इनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल होते हैं । फिर भले ही उनको टिकट लेना हो या गाड़ी पकड़ना हो । ऐसे में उनकी गाड़ी छूटना निश्चित है । केन्द्र और राज्य सरकार दिव्यांगों की भलाई के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाएं करने में पीछे नहीं हटते । यहां आलम ये है कि हमारे दिव्यांग भाई-बहनों का पाईपों के इन अवरोधकों के कारण रेलवे प्रांगण में पहुंचना ही नामुमकिन है । जैसे-तैसे टिकट विंडो पर वे पहुंच भी जाते हैं तो वहां से उनका लिफ्ट या एस्कलेटर तक पहुंचना और भी मुश्किल होता है । प्लेटफार्म नम्बर 2 – 3 तथा 6 -7 पर तो लिफ्ट की सुविधा भी नहीं है । खैर । रेलवे प्रांगण में केवल ये 68 पाईप ही अवरोधक का काम नहीं करते बल्कि पत्थरों के अवरोधक भी बनाये गए हैं । एक लोहे के एंगल से बना अवरोधक भी है । इन सब से जान छुड़ाने के लिये यदि आप ऑटो अथवा अपने वाहन से सामान सहित एस्कलेटर तक पहुंचने की तमन्ना रखते हैं तो आपकी आशाओं पर तब पानी फिर जाता है जब आपको बेरिकेड्स लगाकर रोक लिया जाता है । क्षेत्रीय सांसद मिट्टी के माधव साबित हुए हैं । तो रेलवे सलाहकार समिति के सदस्य शोभा की सुपारी बने हुए हैं ।

इंडियन रेलवे ने समय-समय पर अपनी खस्ता हालत का हवाला देते हुए यात्रियों से एक के बाद एक सारी रियायतें छीन लीं । फिलहाल बात वरिष्ठ नागरिकों की । भारतीय संसद के शीतकालीन सत्र में हमारे रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जो बयान दिया है वह बेहद शर्मनाक और निंदनीय है । उन्होंने कहा कि बुजुर्गों को रेल यात्रा में दी जाने वाली रियायतों को पुनः प्रारम्भ किये जाने का सरकार का कोई इरादा नहीं है । महाराष्ट्र की निर्दलीय सांसद नवनीत राणा द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि रेलवे की हालत अच्छी नहीं है । जबकि रेलवे ने विगत् वर्ष ही यात्री सेवाओं पर 59 हजार करोड़ रुपये का अनुदान दिया है । उल्लेखनीय है कि ये राशि कई राज्यों के वार्षिक बजट से भी अधिक है । इटारसी में लगभग दो वरिष्ठ नागरिक मंच सक्रिय हैं । इनमें से किसी ने भी रेलवे के इस अन्यायपूर्ण कदम का विरोध नहीं किया । सूत्रों के अनुसार सरकार सीनियर सिटीजन की आयु भी 60 से बढ़ाकर 70 वर्ष करने वाली है । पहली बात तो ये है कि अब औसत आयु रह ही कितनी गई है ? दूसरी बात यह कि सरकार 70 वर्ष की आयु होने पर जैसे-तैसे बुजुर्गों को खैरात में अथवा चुनाव के मद्देनजर कुछ रियायतें दे भी देती है तो क्या वे इस उम्र में उपरोक्त रियायत का लाभ उठाने के योग्य रह जायेंगे ?

रेलवे का ड्यूटी सायरन बीते दिनों की याद दिला देता है । सुबह आठ बजे । अपरान्ह चार बजे । रात्रि बारह बजे । ये सायरन नियमित रूप से समय पर बजता है । इसका समय तय रहता है । सायरन इतने तयशुदा वक़्त पर बजता है कि आप चाहें तो इससे अपनी घड़ी मिला सकते हैं । कभी कोई रेल दुर्घटना होती है तो यही सायरन लगातार बिना रुके बजता है । जिसे सुनते ही रेल कर्मचारी मुस्तैदी से अपने काम में लग जाते हैं । एक समय था जब साल बदलने पर 31 दिसम्बर की रात्रि को ठीक बारह बजे स्टेशन पर खड़े सभी रेलवे इंजन एक साथ हॉर्न बजाते थे । तब हम आधी रात को ही जागकर एक दूसरे को नए वर्ष की शुभकामनाएं देते थे । ओह ! वे भी क्या दिन थे और कैसी थीं वे रातें । खैर । फिलहाल बात ड्यूटी सायरन की । वह भी इसलिये क्योंकि पिछले दिनों ही हमने 30 जनवरी को बापू प्रवास स्मृति कक्ष के प्रागंण में महात्मा गांधी की पुण्य तिथि मनाई । इस दिन बापू की हत्या प्रातः ग्यारह बजे हुई थी । बीते कई सालों से हम ये देखते और सुनते आ रहे थे कि 30 जनवरी को इसी निश्चित समय पर सुबह ग्यारह बजे रेलवे का सायरन बजता था और समय जैसे थम जाता था । शहर ठहर जाता था । जो जहां होता था वह वहीं रुक कर बापू को अपनी श्रद्धांजलि देने के लिए खड़ा हो जाता था । यहां तक कि स्कूलों और कार्यालयों में भी दो मिनिट का मौन धारण किया जाता था । अब ऐसा कुछ नहीं होता । अफसोस कि इस बार भी ऐसा कुछ नहीं हुआ । सवाल ये है कि क्या 30 जनवरी के दिन घड़ी में ग्यारह नहीं बजे ? क्या बिना सायरन बजे हम दिन के ठीक ग्यारह बजे दो मिनिट का मौन धारण कर के बापू को अपनी श्रद्धांजलि नहीं दे सकते थे ? पूछिएगा अपनी अंतरात्मा से कि हमने ऐसा क्यों नहीं किया ? … और हमारे जनप्रतिनिधि इसकी सुध क्यों नहीं लेते ?

पिछले दिनों न्यू यार्ड की तरफ जाने वाली सड़क पर हुई दुर्घटना में एक रेल कर्मचारी के पुत्र राहुल की मौत हो गई । रेलवे यार्ड की तरफ जाने वाली सड़क के गहरे गड्ढे गम्भीर हादसों का कारण बने हुए हैं । इन गड्डों की वजह से रोज कोई न कोई रेलवे कर्मचारी घायल हो रहा है । उल्लेखनीय है कि रेलवे के डीजल शेड की एक कर्मचारी शकुंतला नागराज के पुत्र राहुल की इसी मार्ग पर हुई दुर्घटना में दुखद मृत्यु हो गई । पूर्व में मिलन गुप्ता , पीयूष यादव आदि भी इस जर्जर सड़क के गड्डों में गिरकर बुरी तरह घायल हो चुके है । देखा जाए तो यह शहर का सबसे व्यस्ततम मार्ग है । इस मार्ग से होकर ही सैंकड़ों रेल कर्मचारी अपने कर्तव्य स्थल तक पहुंचते हैं । आश्चर्य जनक तथ्य तो यह है कि रेलवे यूनियनों की भी अब कोई सुनवाई नहीं हो रही है । हास्यास्पद तो ये भी है कि लगभग तीन माह पूर्व रोड निर्माण की स्वीकृति मिल चुकी है । डी आर एम ने सड़क निर्माण हेतु 3.5 करोड़ रुपए स्वीकृत भी किए हैं । बावजूद इसके रोड निर्माण कार्य प्रारंभ नहीं किया जा सका है क्योंकि रेलवे अधिकारियों की लापरवाही के चलते सड़क का टेंडर ही अभी तक नहीं हुआ है । बताया जाता है कि नगरपालिका परिषद के हिस्से की सड़क का बनना भी निश्चित नहीं है । इस सम्बन्ध में नगरपालिका का तर्क गले नहीं उतरता । उनका कहना है कि हमारे पास बजट नहीं है । ध्यान दीजिये अमित कापरे जी । फिलहाल बात रेलवे अधिकारियों की । वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक प्रियंका दीक्षित हर दूसरे दिन रेलवे स्टेशन का निरीक्षण करने की खानापूर्ति करने आकर खड़ी हो जाती हैं । जन प्रतिनिधियों को रेल यात्रियों की सुविधाओं से शायद ही कभी कोई लेना-देना रहा हो । रेल यात्रियों के ओव्हरब्रिज चढ़ने के लिए कभी एस्कलेटर बन्द हो जाते हैं तो कभी प्लेटफॉर्म पर आवागमन के लिए लगाई गई लिफ्ट बन्द हो जाती है । सीनियर सिटीजन , महिलाओं , दिव्यांगों का दर्द तब और बढ़ जाता है जब उन्हें करीब अस्सी सीढ़ियां चढ़ना-उतरना पड़ता है । महिला रेल यात्रियों को तो रेलवे टिकट लेने तक में काफी मशक्कत करनी पड़ती है क्योंकि टिकिट काउंटर पर उनके लिए पृथक से लाइन लगाने की कोई व्यवस्था नहीं है । अतएव उनको अपनी इज्जत दांव पर लगाकर पुरुषों के साथ ही एक लाइन में लगना पड़ता है । वहां वे पुरुषों के अभद्र व्यवहार तथा धक्कामुक्की का शिकार होती हैं । ऐसे में उनकी सुरक्षा सहायता के लिये कोई रेलवे पुलिस कर्मी मौजूद नहीं रहता क्योंकि वे उगाही में व्यस्त रहते हैं । रेलवे के थाना प्रभारी चैन की वंशी बजा रहे हैं । होना तो ये चाहिये कि महिलाओं के लिए अलग से रेलवे टिकट विंडो की व्यवस्था की जाए ।

नई दिल्ली से आने वाली जी टी एक्सप्रेस का समय लगभग ढाई घन्टे पीछे कर दिया गया । इससे गंज बासौदा , विदिशा , भोपाल , रानी कमलापति , नर्मदापुरम् , इटारसी , घोड़ाडोंगरी स्टेशनों पर रात्रि में उतरने वाली अकेली महिला रेल यात्रियों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है । केवल इतना ही नहीं इस ट्रेन से गम्भीर रोगों से ग्रस्त सैंकड़ों मरीज , हमारे किसान भाई , व्यापारी बंधु , पढ़ने वाले छात्र-छात्रायें , शासकीय कर्मचारी भी प्रतिदिन आना-जाना करते थे । यह सुविधा भी उनसे छीन ली गई । देखा जाए तो उपरोक्त सभी यात्रियों के लिये जी टी एक्सप्रेस उनकी जीवनदायिनी ट्रेन थी । उनकी लाइफ लाइन थी । 2023 में विधानसभा और 2024 में लोकसभा चुनाव हैं । आम मतदाता बेचैन है । जन प्रतिनिधियों से जवाब तलब करने के लिये । … और उन्हें इन सारे सवालों का जवाब देना होगा ।

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