लघुकथा : ख़ुशी के आँसू – कुन्ना चौधरी जयपुर

लघुकथा

ख़ुशी के आँसू

बात सन् ६० की है, मोहनलाल गुप्ता राजस्थान के छोटे से गाँव से पढ़ाई के साथ साथ काम करने बम्बई (आज का मुम्बई )आये ।साथ में पत्नि ललिता और चार साल का बेटा था ।१००₹ की तनख़्वाह ,नौकरी लग गई और शाम को लाँ की पढ़ाई करने लगे ।बेहतर ज़िन्दगी की आस में मेहनती गुप्ता जी भरसक कोशिश करते ,उन्होंने कलकत्ता की एक तेल मिल में नये काम के लिये अर्ज़ी दाखिल कर दी ।
आज हाथ में मिठाई और एक गजरा ले कर गुप्ता जी चाल कि सीढ़ियाँ चढ़ रहे थे ..
“ललिता ललिता … सुनो ज़रा . सुनो तो “आवाज़ लगाई ॥
हां जी आई’ कहती हुई ललिता बाहर निकली पर ये क्या रोज़ मुस्कान बिखेरती हुई ललिता का चेहरा यूँ लटका हुआ क्यों था ? आँखें भी बता रही थी कि आज रोई थी शायद !
भूल कर अपनी बात गुप्ता जी पूछने लगे क्या हुआ सब ठीक है ना ।
“हाँ जी हाँ आप बताये ….आज बहुत ख़ुश है मिठाई भी लाये है क्या हुआ ?”ललिता ने धीमे से पूछा ।
अरे बात तो ख़ुशी की है ललिता मुझे कलकत्ता से इन्टरव्यू का कांल आया है , हमारी तरक़्क़ी निश्चित है अब , पर तुम क्यों उदास हो ललिता ……हाथ थाम कर पूछने लगे गुप्ता जी !
“वो सुबह मुझे पता चला कि घर में नया मेहमान आने वाला है , इतनी कम तनख़्वाह में एक बेटे का लालन पालन ही नहीं हो पा रहा सही से ,अगले साल स्कूल में दाख़िला भी करवाना है , इसके साथ एक और बच्चे की ज़िम्मेदारी सोच सोच कर ही मन घबरा रहा था…. “धीरे धीरे हिचकिचाहट के साथ ललिता कहने लगी ।
“बस इतनी सी बात अरे ! ईश्वर पर भरोसा नहीं है ,क्या देखो जो आने वाला है ,शायद उसी के भाग्य से मुझे आज ही तरक़्क़ी मिली है “गुप्ता जी ने बेटे को गोद में लेकर उसे मिठाई खिलाने लगे , पति पत्नी दोनो के आँखों से ख़ुशी के आँसू बहने लगे !

कुन्ना चौधरी
जयपुर

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