समीक्षा : प्रो. विनीत मोहन औदिच्य का साॅनेट संग्रह “सिक्त स्वरों के साॅनेट “समसामयिक एवं अद्वितीय है – डॉ. चंचला दवे,सागर

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समीक्षा :
प्रो. विनीत मोहन औदिच्य का साॅनेट संग्रह “सिक्त स्वरों के साॅनेट “समसामयिक एवं अद्वितीय है – डॉ. चंचला दवे,सागर

अपनी आत्मीय प्रज्ञा द्वारा आंतरिक चेतना और भावों को समेटकर साहित्य की सेवा में समर्पित कर देना कवि का अवदान होता है। जब जहां जिस प्रकार का भाव बिंब उसके अंतर्मन में स्पंदित  होता है ,तब उसे शब्दों में पिरो कर वह आनंद के प्रवाह में डूबता हुआ सृजन को जन्म देता है ।उसके इस अविरल प्रवाह को छंद अनुशासित करते हैं छंदबध्द रचनाएं  कवि के काव्य में अलंकार ,रस और छंद को जन्म देती है कभी यह सृजन पारंपरिक, कभी व्यक्तिगत, कभी सामाजिक होता है।
       साॅनेट इटालियन शब्द Sonetto का लघु रूप है। यह छोटी धुन के साथ मेंडोलियन या ल्यूट (एक प्रकार का ताल वाद्य ) पर गायी जाने वाली कविता है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि साॅनेट का जन्म ग्रीक सूक्तियों एपीग्राम (Epigram) से हुआ होगा पुराने समय में एपीग्राम का प्रयोग एक ही विचार या भाव को व्यक्त करने के लिए होता था एक मान्यता है कि इस विधा का जन्म से सिसली में हुआ और इसे जैतून के वृक्षों की छटाई करते समय गाया जाता था।
      तेरहवीं शताब्दी के मध्य में साॅनेट  का वास्तविक रूप सामने आया ।फ्रा गुइत्तौन को साॅनेट  का प्रणेता माना जाता है ।
      भारत में कवि त्रिलोचन जी को साॅनेट का साधक माना जाता है।
      प्रो. विनीत मोहन औदिच्य एक कवि ग़ज़लगो ,साॅनेटियर हैं उनका साॅनेट संग्रह “सिक्त स्वरों के साॅनेट ”  जीवन के हर पहलू को उजागर करता जीवन की आपाधापी में भी मंगल वर्षा करता एक ऐसा बेहतरीन गुलिस्ताँ है जिस की महक हमारे मन प्राणों को स्वरों में आबध्द कर सिक्त करती है।
        विनीत मोहन जी ने त्रिलोचन शास्त्री जी के पश्चात साॅनेट को जनमानस के समक्ष प्रस्तुत किया है ग़ज़ल से अपनी सृजन यात्रा को आरंभ करते हुए साॅनेट के क्षेत्र में ,अनुवाद के क्षेत्र में ,अपना सम्मानजनक स्थान हासिल किया है।
   उन्होंने “प्रतीची से प्राची पर्यंत” नामक पुस्तक में अंग्रेजी साॅनेट्स का हिंदी अनुवाद किया तो दूसरी पुस्तक चिली के विश्व विख्यात कवि पाब्लो नेरुदा के सौ साॅनेट का काव्य अनुवाद किया “ओ प्रिया “शीर्षक से इस पुस्तक ने बहुत ख्याति अर्जित की। इस काव्य अनुवाद में कवि ने ईमानदारी से शब्दों का निर्वाह किया ,”सिक्त स्वरों के सोनेट”  कवि की मौलिक रचना है कोई भी रचना तभी कालजयी होती है जब हमारे अंतर्मन को सिक्त कर देती है तब शब्द स्वर बध्द हो ब्रह्मांड में गूंजते हैं।
          *सिक्त स्वरों के साॅनेट* की रचनाएं जीवन के अनुभवों प्रसन्नताओं ,प्रकृति और विसंगतियों के लोक में पर्यटन करती हैं।
     हर रचनाकार का अपना अलग स्वभाव होता है अपने देश काल सामाजिक पारिवारिक एवं जीवन में घटित प्रत्येक परिस्थिति से प्रभावित होता है।
     पुस्तक का पहला साॅनेट जीवन में कवि ने जीवन को धूप छांव ,सुख-दुख ,आशा निराशा की कसौटी पर कस कर अपने अनुभव से हमें जीवन को जीने की प्रेरणा देता है।

   *कैसे समझाऊं इस जीवन की अति दुरूह परिभाषा*
*धूप छांव से सुख दुख रहते  और आशा निराशा*
पाठ सिखाता नित्य नूतन यह है अनुभव की शाला
   गीत हो, कविता हो, साॅनेट हो, इसकी संजीवनी मनुष्यता को पुनर्जीवित करती है संवेदनशीलता रागात्मकता,आत्मबोध ,तरलता का परिचायक कही कवि की अभिलाषा होती है।

      रात्रि ,सोनेट में कवि रात में होने वाले काले कारनामों की बात कही है वहीं दूसरी ओर युगल प्रणय की मधुर वार्ता है ,रात्रि ही दिन भर की आपाधापी के बाद परिवार के सभी सदस्य एकत्रित होकर सुख दुख की बात कर निद्रा के आगोश में समाते हैं वही एक ओर रात्रि
को कवि ने ईश्वर साधना का सर्वोत्तम समय बताया है।
   *रात्रि पहर की जैसे तैसे बढ़ती काली कलुषित छाया*
*तभी तामसिक वृति उग्र हो षड़ यंत्रों का विस्तृत साया।*—-
ईश साधना रात्रि समय में सदा पुण्य फल देती दुगना—
         कवि ने अपने साॅनेट्स में रामायण के पात्रों को समाहित किया है जो आपको अपनी आध्यात्मिक रुचि को दर्शा कर एक सच्चा भारतीय होने की दिलासा भी देता है ।सीता, श्री राम , सौमित्र, हनुमान ,भरत जैसे आदर्श पात्रों को अपनी पुस्तक में स्थान दिया है ।साॅनेटियर विनीत मोहन जी के काव्य में परिपक्व मानवीय संवेदनाएं ,अनुभव, जिजीविषा, आत्मविश्वास ,आशावाद ,पीड़ा की अनुभूति, रूप रस गंध का रागात्मक बोध ,तरलता,कोमलता ,प्रेम ,सामाजिक चेतना, पशु पक्षी सभी कुछ समाहित है।
       इस संग्रह में व्यष्टि से समष्टि तक का व्यापक एवं विराट फलक है।
   ‘प्रेम चातक’ साॅनेट की निम्न पंक्तियाँ उल्लेखनीय हैं
-स्पंदन के अनुराग में तुम ही तो समाहित हो। *तप्त तनु की रागिनी में भी तुम्हारा नाम है गूंजता।*

बेटी के संबंध में विचार व्यक्त करते हुए कवि कहता है
*बेटी को शिक्षित करने पर ,वह आगे बढ़ सकती है*
*होकर खड़े स्वयं पैरों पर भाग्य कई गढ़ सकती है ।*
यह पंक्तियां सरकार की मंशा बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ को सार्थक करती है।
     भारतीय त्यौहारों में राधा-कृष्ण शाश्वत मिथक रूप में व्याप्त हैं।
‘ दिव्य युगल सरकार’ साॅनेट में यह दिव्यता दिखाई देती है।
*अधरों पर मुरली सजे ,मधुर बजाये श्याम*
*राधा एकदम ताकती चपल नयन अभिराम*

*सब जग राधा को भजे ,कान्हा राधे नाम*
*राधे राधे जो जपे ,पा जाए प्रभु धाम*

‘नारी नर की खान है, नारी से नर होत है ध्रुव प्रह्लाद समान ।’ इन पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए विनीत मोहन जी

‘नारी शक्ति’ साॅनेट में स्त्री के विभिन्न रूपों का वर्णन करते हुए विनीत मोहन जी लिखते हैं –

*प्रथम कवयित्री होती है मां ,जब वह लोरी गाती है*
*नन्हे शिशु को थपकी देकर अपनी गोद सुलाती है ।*
मां के सुंदर रूप का वर्णन करने के लिए मैं कवि की कलम को नमन करती हूं।

‘शिक्षक’ साॅनेट में —
*शोषण करता विद्यार्थी का करता जमकर खींचातानी*
यह पंक्ति गुरु शिष्य परम्परा के विपरीत आधुनिक युग के भौतिकतावादी शिक्षकों पर करारा व्यंग्य करती है ,यद्यपि सभी शिक्षक ऐसे नहीं होते।
  एक ओर युद्ध की विभिषिका का चित्रण है।
दूसरी ओर देश के प्रति अपना श्रद्धा है।
   ‘ सुरसरि’ साॅनेट में गंगाजी की अद्भुत पावनता का वर्णन है, दूसरी ओर उसके प्रदूषण पर चिंता भी व्यक्त की है।

अपने हर साॅनेट में सुंदर साहित्यिक शब्दों के चयन में प्रो.विनीत मोहन जी बहुत सावधान है भाषा की पकड़ कहीं भी ढीली नहीं पड़ती पढ़ते हुए मन के भावों को  भिगो  जाती है।
         ‘प्राण -सुधा’ साॅनेट में वे कह उठते हैं।

*प्राण सुधा, स्फूर्ति ,चेतना ,शक्ति हो*
*तुम ही केवल मेरी नवधा भक्ति हो।*
    प्रो. विनीत मोहन जी एक संवेदनशील रचनाकार हैं  ,जगत में व्याप्त हर जीव प्रकृति के प्रति प्रेम रखते हैं ,यह आप तभी जान पाएंगे जब आप “सिक्त स्वरों के साॅनेट” पढ़ेंगे।
  इस पुस्तक में क्या नहीं हैं ? वे युगीन चेतना के कवि हैं, जीवन है तो शून्यता भी है ,रात है, श्रावण है ,चिड़िया है ,नारी है ,सीता ,राम, हनुमान ,भरत ,सौमित्र हैं ,वसंत ऋतु है ,चातक हैं ,नदियाँ हैं ,ईश्वर है ,और ग्रामीण जीवन है, राष्ट्र प्रेम है ,और प्रेम है ,जगत जननी माँ है और इतना विराट फलक है जिसे शब्दों में पिरोना असंभव है।
    इस पुस्तक की विशेषता उसकी सरलता और सहजता है ।झरने की तरह मां सरस्वती की कृपा से इस स्फुरित साॅनेट उनकी अंतरात्मा के स्वर हैं, जिन्हें साॅनेट का आवरण पहना कर कवि ने प्रस्तुत किया है ।
विनीत मोहन जी  अपनी जड़ और जमीन से जुड़े व्यक्ति हैं इसलिए उनका सृजन भूमंडलीकरण की चपेट में आने से बचा हुआ है। आज जब सारा विश्व महंगाई, बेरोजगारी  से जूझ रहा है ऐसे निर्मम समय में इस पुस्तक के साॅनेट्स को पढ़ना वृंदावन में कृष्ण के माधुर्य को अनुभव करना है।
    संरचना की दृष्टि से साॅनेट्स समसामयिक हैं,विषय खोजने के लिए उन्हें कहीं नहीं जाना पड़ा,सभी कुछ उनकी दृष्टि में समाहित है।उनके छांदस साॅनेट भी माधुर्य, गेयता व लयबद्धता से ओतप्रोत हैं।
       औदिच्य मूल रुप से गुजराती हैं। अंग्रेजी के प्राध्यापक हैं। अनुवाद और साॅनेट्स  शुद्ध हिन्दी में लिखे है।
 वह श्रेष्ठ अनुवादक भी हैं साथ ही भारत में उच्च सम्मानों से सम्मानित होते रहे हैं।
राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय पत्रिकाओं में आपके आलेख एवं साॅनेट्स , प्रकाशित होकर,सराहे जाते हैं।
  
सर्व भाषा ट्रस्ट से प्रकाशित यह पुस्तक ,गागर में सागर भरती हैं।
   हार्दिक बधाई देते हुए, प्रार्थना करती हूँ कि उन पर , माँ सरस्वती की कृपा सदा बनी रहे।
                   ‌
 – डॉ. चंचला दवे
कवयित्री, लेखिका
सागर, म. प्र.

  

    

1 COMMENT

  1. सिक्त स्वरों के sonet पर चंचला जी ने सार्थक समीक्षा लिखी है। उन्होंने रचनाकार प्रो. विनीत मोहन जी के सृजन के समस्त पक्षों पर प्रकाश डालकर संग्रह को पाठकों को इसे शीघ्र पढ़ लेने की उत्सुकता तक पहुंचाया है ।

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