
पत्र
आप बजट में देते हैं या लेते हैं?
देश का बजट चर्चा में है। पक्ष विपक्ष अपनी अपनी लाइन पर मीडिया में प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं । इससे परे मेरा सवाल यह है कि न केवल आर्थिक रूप से बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखकर सोचना होगा कि हम आप राष्ट्रीय औसत में अपना योगदान दे रहे हैं या समाज पर बोझ बनकर सरकारों से ले रहे हैं ?
भारत की औसत आय से हमारी आय कम है या ज्यादा ? हम कितना डायरेक्ट टैक्स आयकर तथा अन्य सरकारी विभागो को देते हैं ? कितना इनडायरेक्ट टैक्स देकर हम राष्ट्रीय विकास में सहयोग करते हैं , समाज को हमारा योगदान क्या है ? क्या हम महज सब्सिडी , सरकारी सहायता लेने वाले पैरासाइट की तरह जी रहे हैं ?
न केवल आर्थिक रूप से बल्कि अन्य पहलुओं जैसे राष्ट्रीय औसत आयु,स्वास्थ्य, शिक्षा , जल, पर्यावरण एवं ऊर्जा संरक्षण, पौधारोपण , कार्बन उत्सर्जन, स्त्री शिक्षा , लड़कियों के सम्मान , औसत विवाह की उम्र , जैसे सूचकांको में व्यक्ति के रूप में हमारा योगदान सकारात्मक है या नकारात्मक , यह मनन करने तथा अपना योगदान बढ़ाने की जरूरत प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। देश नागरिकों का समूह ही तो होता है। राष्ट्रीय सुरक्षा , तथा विकास का पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर और रचनात्मक वातावरण देना शासन का काम होता है , बाकी सब नागरिकों को स्वयं करना चाहिए। जहां अकर्मण्य नागरिक केवल स्पून फीडिंग के लिए सरकारों के भरोसे बैठे रहते हैं , ऐसे देश और समाज कभी सच्ची प्रगति नहीं कर पाते । तो इस बजट के अवसर पर चिंता कीजिए कि आप कैसे नागरिक हैं ? समाज से लेने वाले या समाज को देने वाले ।
विवेक रंजन श्रीवास्तव,
भोपाल

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।