
शब्द-निःशब्द
अचानक ही
हमारी सोच के विपरीत
घट जाती है जब कोई घटना
तो द्रवित हो उठता है मन…
सिहर उठता है
ऊपर से नीचे तक सारा बदन।
*निःशब्द* हो जाते हैं लब
और सूख जाते हैं आँसू
पलकों की कोर तक आकर…।
जीवन पथ पर
उन्मुक्त आलाप लेने में मग्न मन भी
अप्रत्याक्षित घटनाक्रम पर
हो जाता है *निःशब्द*…।
हो जाती हैं मुस्कानें अलोप।
सच में,
बहुत खलती हैं
उन्मुक्त हँसी बिखेरने वालों के
असमय ही
संसार से बिदा हो जाने की
ह्रदय विदारक सूचनाएं….।
काश!!!
हम तोड़ पाते
असमायिक चुप्पियाँ…।
दे पाते दुखी मन को दिलासे
और कर पाते
विपरीत घटनाओं को
सह्रदयता से कबूल।
निकाल पाते
शबनमी फूलों की पंखुड़ियों में चुभे
ह्रदय विदारक शूल…।
कर पाते यदि हम
दूसरे के दर्द का एहसास….
तो हम कभी भी
*निःशब्द* नही रह पाते..।
बल्कि
अकल्पनीय घटनाक्रम से आहत हुए दिलों को
शब्दों की झप्पी देकर
उनकी रुकी हुई जिंदगी को
रफ्तार दे पाते…
थमी उम्र को विस्तार दे पाते..।
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चरनजीत सिंह कुकरेजा
भोपाल

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
बहुत सुंदर रचना है बिलकुल सही बात कहीं है कुछ ऐसा होता है जो अपने मन का ना हो तो इंसान टूट जाता है और अपने आप को अकेला महसूस करता है भरोसा नहीं उसे अपना भी साथ नहीं देता जिन्को वह अपना कहता है
उत्कृष्ट भावप्रवण रचना । बधाई 💐💐💐💐
बहुत खूब .
विपरीत परिस्थितियों से उबरने का बहुत ही भावनात्मक समाधान कविता के माध्यम से सुझाया गया है🥀🥀🥀👏👏👏⚘⚘⚘