
समीक्षा
पारिस्थितिक चेतना और दुनियावी परिवेश का अद्भुत लेखन है डॉ.सुजाता मिश्र की 18 समीक्षाएं
समीक्षा : 18 समीक्षाएं
लेखिका – डॉ.सुजाता मिश्र
प्रकाशक – अमन प्रकाशन,सागर
मूल्य – 200₹
समीक्षक – देवेन्द्र सोनी ,इटारसी
समीक्षा लिखना और अपनी ही लिखी हुई समीक्षाओं का पुस्तक के रूप में प्रकाशन होना, किसी भी समीक्षक एवं प्रकाशक के लिए सर्वथा नया प्रयोग है क्योंकि कम से कम मेरे देखने में तो इस तरह की यह पहली ही समीक्षात्मक कृति है, जिसमें डॉ. सुजाता मिश्र की अपनी ही की हुई “18 समीक्षाएं” पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित हुई हैं।
निश्चित ही यह प्रयोग पुस्तक में सम्मिलित लेखकों की कृतियों और समीक्षक डॉ. सुजाता मिश्र को साहित्य जगत में नजीर के रूप में सदैव ही याद रखेगा।
किसी भी निरंतर अध्ययनशील लेखक/ समीक्षक के लिए यह पहल महत्वपूर्ण एवं अनुकरणीय है।
हाल ही में अमन प्रकाशन, सागर से प्रकाशित डॉ. सुजाता मिश्र की समीक्षात्मक किताब- ’18 समीक्षाएं’ ऐसी ही एक कृति है ।
हर विषय पर अपनी तीखी नजर रखते हुए सकारात्मकता की पक्षधर और चर्चित लेखिका डॉ.सुजाता मिश्र ने जिन 18 पुस्तकों की समीक्षा की, वे हैं- प्रो एस एल भैरप्पा की ‘‘आवरण’’, आशुतोष राणा की ‘‘रामराज्य’’, मीनाक्षी नटराजन की ‘‘अपने-अपने कुरुक्षेत्र’’, डॉ मनोहर अगनानी की ‘‘अंदर का स्कूल’’, श्री भगवान सिंह की ‘‘गांव मेरा देश’’, सूर्यनाथ सिंह की ‘‘नींद क्यों रात भर नहीं आती’’, अरुणेंद्र नाथ वर्मा की ‘‘जो घर फूंके आपना’’, ओम भारती की ‘‘स्वागत अभिमन्यु’’, नीलिमा चौहान एवं अशोक कुमार पांडे की ‘‘बेदाद ए इश्क रुदाद ए शादी’’, राजकुमार तिवारी की ‘‘कुमुद पंचर वाली’’, अग्नि शेखर की ‘‘जलता हुआ पुल’’, आनंद कुमार शर्मा की ‘‘कभी यह सोचता हूं मैं’’ अशोक मिज़ाज बद्र की ‘‘किसी किसी पर गजल मेहरबान होती है’’ तथा ‘‘अशोक मिजाज की चुनिंदा गजलें’’, डॉ मनीषचंद्र झा की ‘‘गीतगीता’’, वीरेंद्र प्रधान की ‘‘कुछ कदम का फासला’’, डॉ प्रतिभा सिंह परमार राठौड़ पर केंद्रित ‘‘शब्द ध्वज विशेषांक’’, चंचला दवे की ‘‘गुलमोहर’’ एवं डॉ वर्षा सिंह की ‘‘ग़ज़ल जब बात करती है’’, शामिल हैं।
यह सभी समीक्षित पुस्तकें विविध विधाओं की हैं। इनमें उपन्यास भी हैं , काव्य संग्रह भी हैं, कहानी संग्रह भी है और ग़ज़ल संग्रह भी हैं।
…अर्थात डॉ. सुजाता सभी विधाओं में अपना दखल रखते हुए उनका अध्ययन-मनन कर , अपनी बेबाक राय प्रकट करती हैं। यही कारण है कि इन ’18 समीक्षाओं ‘ में उन्होंने “लेखक को नहीं , लेखन को महत्व” देते हुए ईमानदारी से पढ़कर चिंतन किया है । तब कहीं वे इन अठारह किताबों में मौजूद जीवन के विविध रंगों के साथ ही आलोचनात्मक पक्ष को भी बड़ी खूबसूरती से उकेर पाई हैं।
अलावा इसके, इस संकलन की एक विशेषता मुझे और नजर आई। सभी समीक्षित पुस्तकों के आवरण और उनके लेखकों का परिचय भी इसमें शामिल किया गया है , जिससे पाठकों को लेखकों के व्यक्तित्व और कृतित्व को भी समझने में आसानी होती है ।
समीक्षा के दौरान लेखिका ने विभिन्न विधाओं पर पारिभाषिक रूप से अपने विचार भी व्यक्त किए हैं जो पढ़ने-लिखने वालों के लिए महत्वपूर्ण हैं।
लेखिका का मानना है कि – ” जब कलाकार सिर्फ कलाकार होकर सृजन करता है तो उसे पूरी आज़ादी मिलनी चाहिये, मगर जब कलाकार किसी विचारधारा विशेष के प्रचार और समर्थन हेतु अपनी सृजन शक्ति का प्रयोग करता है तब वह कलाकार नही रहता सिर्फ एक वैचारिक दल का कार्यकर्ता या नेता बनकर रह जाता है” ।
…इसीलिए ऐसे कलाकारों से वे कहतीं हैं – हम श्रीराम को तो मानते हैं लेकिन उनकी नहीं मानते । हमने उनके चरणों को तो पकड़ा हुआ है लेकिन उनके आचरणों को ग्रहण करने में हमसे चूक हो जाती है । इसीलिए अगर रामराज्य सही अर्थों में स्थापित करना है तो उनके आचरण को अपनाना होगा।
कितना सही आंकलन है यह।
सृजन -साधकों को आवश्यक रूप से समझना होगा इसे, क्योंकि आज हालात ही ऐसे हो गये हैं कि साहित्य भी वैचारिक आरोप-प्रत्यारोप से जूझते हुए स्वयं का वजूद बचाते नजर आता है।
यहां सभी 18 समीक्षाओं की समीक्षा करना तो संभव नहीं किन्तु इतना कह सकता हूँ, कि – सहज, सरल और बोधगम्य भाषा में की गई यह सभी 18 समीक्षाएं , जहां एक ओर दुनियावी परिवेश को समाहित करते हुए चलती हैं वहीं दूसरी ओर एक ही पुस्तक में विभिन्न लेखकों के भाषा कौशल और पारिस्थितिक चेतना से भी परिचित करवाती है।
साहित्य जगत के सुधि पाठकों के लिए तो डॉ.सुजाता मिश्र की किताब- “18 समीक्षाएं” महत्वपूर्ण है ही , साथ ही यह लेखकों और समीक्षकों के लिए भी प्रेरणास्पद संग्रह है।
मेरी शुभकामनाएं हैं।
– देवेन्द्र सोनी
सम्पादक युवप्रवर्तक
इटारसी।
मो.9111460478

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।