
कौन सिखाएगा डेढ़ सयाने का मतलब
आज सब्जी और फल खरीदने बाज़ार गया था जो कि मेरे कर्तव्यों में शामिल है, सो मैंने एक फल दुकान से तरबूज (जिसे पसंद करने के बाद तौला जाता और कीमत लगाई जाती है) और एक किलो बादाम आम खरीदा. दुकानदार का पिता मेरा पुराना परिचित है इसलिए ज्यादातर अपनी पसंद के फल उसी से लेता हूँ. दुकानदार का करीब 10 साल का पुत्र भी दुकान पर था जो पिता के कहे अनुसार मिलने वाले पैसे को गल्ले में डालने का काम कर रहा था. दुकानदार ने तरबूज और आम की कुल कीमत डेढ़ सौ रुपये बताई सो मैंने सौ के एक नोट के साथ कुछ खुल्ले नोट मिला कर डेढ़ सौ रुपये बच्चे की तरफ बढ़ा दिए उसने हाथ बढाकर पैसे उठाते हुए अपने पिता से पूछा कि कितने पैसे हुए पापा? उसकी इस बात को सुनकर इससे पहले कि उसे पिता का जवाब मिलता मैंने कहा एक सौ पचास रुपये और तुरंत उसके बाद कहा वन हंड्रेड फिफ्टी रुपी. और उसके बाद पिता की तरफ देखा तो वो मुस्कुरा रहा था. मैंने उसे कहा कि इसे अद्धे और पौवे के पहाड़े भी सिखाओ वर्ना ये ढाई, साढ़े तीन, साढ़े चार या पौने और सवा के लिए भी किसी दिन पूछेगा.
पिछले साल ही शायद प्राथमिक शिक्षा में तीसरी कक्षा तक हिंदी और मातृभाषा को अनिवार्य कर दिया है और अन्य भाषा जैसे अंग्रेजी को उसकी बाद की कक्षाओं में पढ़ाने को कहा गया है. शायद यही वजह है कि बच्चे अंग्रेजी माध्यम में पढने की होड़ में अपनी भाषा के अनिवार्य शब्दों से विमुख होते जा रहे हैं. पहले किसी को अपनी उम्र से ज्यादा समझदार होने पर डेढ़ सयाना कहते थे उसे अब लोग ढेर सयाना कहने लगे हैं. यहाँ पर हो सकता है आपको इसमें कोई परेशानी न लगे लेकिन हिंदी गणित इकाइयों के पहाड़े तो बहुत जरुरी हैं.
जो मित्र हिंदी माध्यम से प्राथमिक पढ़ाई कर चुके हैं या पुराने समय की प्राथमिक कक्षाओं में पाठ्यक्रम में शामिल लोगों ने पव्वे, अद्धे, पौने, सवा और ढाई के पहाड़े पढ़े हैं वो सहज ही रूप से स्वीकार करेंगे कि इन भारत देश की छोटी इकाइयों के पहाड़े उनके जीवन में आज भी कितने उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं.
बहरहाल अब देश के उन युवा पालकों को सोचना होगा है कि वो अपने आपको डेढ़ सयाना मानेंगे या ढेर सयाना?
– इंजी. बीबीआर गाँधी
(स्वतंत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्त्ता)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।