काव्य भाषा : गौरैया – डॉ ब्रजभूषण मिश्र भोपाल

आज गौरैया दिवस पर

गौरैया

उड़ने दो आकाश मुझे
रहने दो अपने पास मुझे
तुम,खेलो ,कूदो भी साथ मेरे
बोलती,कहती जो ,कहने दो
मैं गौरैया सबकी,जीवित मुझको रहने दो

मेरी चींचीं सुनकर तुम बड़े हुए
अपने पैरों तुम खड़े हुए
मुझको प्रति दिन दाने डाले
दिया पानी भी,मुझको पाले
आ रहा ग्रीष्म,पेड़ रहने दो,
जीवित मुझको भी रहने दो

किया बहुत शोर,मैं उड़ भागी
बची जीवित तो फिर मैं जागी
दो शुद्ध पवन,छाया मुझको
मुझे चीं चीं, कहानी कहने दो
मेरे घोसले भी घर मे रहने दो
मैं तुम्हारी गौरैया,जीवित मुझको भी रहने दो

उड़ती, बैठती घर ,आँगन में
रखूँ घर ,मंदिर सा पावन मैं
हर उम्र तुम्हारे साथ रही
रही,सदा कहानी मेरी यही
मुझे,पवन गंगा सी बहने दो
मैं दोस्त तुम्हारी गौरैया,जीवित मुझको भी रहने दो

डॉ ब्रजभूषण मिश्र
भोपाल

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