काव्य भाषा : होली-रँगरेज के सँग – चरनजीत सिंह कुकरेजा भोपाल

होली-रँगरेज के सँग

नाम प्रभु के रंग से,जिसे रँगे रँगरेज।
भाती उसको फिर नही,फूलों वाली सेज।

जिस नरदेही पर चढ़ा,प्रभु प्रीत का रंग।
हो ली उसकी रूह फिर,रँगरेज के संग।

चढ़ा हुआ रँग देखना,तो देखो सूर कबीर।
विष का प्याला पी गई,कहीं मीरा कहीं हीर।

प्रभु प्रेम के रंग में,जो रहते तरबतर।
वश में करते हैं वही,मोह माया के पर।

लाल गुलाबी रंग तो,उतर जाए इक रोज।
लागा जिस पर प्रीत रँग,निखरा उसका ओज।

हौले हौले धुल जाएंगे,होली के रंग दाग।
रूह भीगी जो प्रेमरँग,निस दिन खेले फाग।

रँगरेज परमात्मा ताके सबकी बाट।
हम ही वो दर छोड़ के,भटके हाटो हाट।

चरनजीत सिंह कुकरेजा
भोपाल

1 COMMENT

  1. वाह !वाह !! वाह !!!
    होली पर ऐसी आध्यात्मिक मुबारकबाद !!!!
    लाजवाब !!!!!!
    बहुत आनंद आया l?????????

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