काव्य भाषा : फागुन की फुहार -मंजू शर्मा भुवनेश्वर (उड़ीसा)

फागुन की फुहार

होली आई होली आई, मन में भरो उमंग ।
हमजोली बन जाओ सखियों, मन में भरो तरंग ।

गली गली में धूम मची है, घोट रहे सब भंग।
नाचे गाएँ हुरियारे सब, होकर मस्त मलंग।

गुजियाँ, पापड़ भंग सजे है,थाली भरकर आज।
नशा खुमारी खूब चढी है, सजे है सारे साज।

रंग बिरंगे पहन मुखौटे,ठगते देखो लोग
मन में द्वेष भावना है पर,अपनेपन का ढोंग।

ये पर्व प्रेम सौहार्द का,नही नशे का नाम।
तन मन रंग लो सबको यही,होली का पैग़ाम।

आओ रास रचाए गाएँ, मिल फ़ागुन के गीत।
मन के सारे द्वेष मिटाकर,कर लें सबसे प्रीत।

मंजू शर्मा
भुवनेश्वर (उड़ीसा)

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