काव्य भाषा : अवध की शाम – प्रशान्त ‘अरहत’ शाहाबाद, हरदोई

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ग़ज़ल

अवध की शाम

तुम्हारे दिल की धड़कन और ये नग़्मात काफ़ी है।
हमारे प्यार की बुनियाद को जज़्बात काफ़ी है।१।

ज़माने में नहीं कुछ बस तुम्हारा साथ हो फिर तो,
बिताने को अवध की शाम, ये सौग़ात काफ़ी है।२।

इरादा है अभी मेरा क्षितिज तक साथ चलने का,
रहे हाथों में मेरे बस….तुम्हारा हाथ काफ़ी है।४।

ज़रूरत ही नहीं अनुबंध पत्रों की मुझे तो अब,
कही जो बात है मैंने मियाँ वो बात काफ़ी है।४।

हमेशा याद आएगी मुझे हर पल तुम्हारे बिन,
गुज़ारी थी गुज़िश्ता साल जो, वो रात काफ़ी है।५।

किसी के दिल में अपना घर बनाने के लिए जानाँ,
नफ़ासत और सदाक़त से भरा जज़्बात काफ़ी है।६।

सफ़र काँटों भरा हो या कि हों फूलों भरी राहें,
किसी को भी गिराने के लिए हालात काफ़ी है।7।

मुहब्बत में अलग करने पे आमादा ज़माना है,
नहीं कुछ और बस इनके लिए तो जात काफ़ी है।८।

©प्रशान्त ‘अरहत’

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