

युद्धोन्माद
युद्ध
ढाई अक्षरों के समन्वय से निर्मित
ऐसा शब्द है
जो समन्वित होते ही
सोख लेता है
समग्र प्राणियों के ह्र्दयस्थल से
स्फुटित हुए
अनुराग और नेह के
सारे निर्मल स्त्रोत।
युद्ध
ह्रदय से ह्रदय तक मार करने वाली
अवांछित मिसाइलों का
ऐसा संगठन है,
जिसके संगठित होते ही
टूट जाते हैं
मानव को मानव से जोड़ने वाले
भावनात्मक अनुबंधों के सारे सेतू।
युद्ध
मानवता को चुनोती देने वाला
बगावत का ऐसा बिगुल है,
जिसके बजते ही
उड़ जाते हैं
अमन के परकोटों से
निश्चिंत विचरते
मिष्टभाषियों के सारे के सारे दल।
युद्ध
घृणा और उन्माद की
वह चरमसीमा है
जिसे लाँघने वाला
मानवीय मर्यादाओं को विस्मृत कर
आदमखोरों के टोले में शामिल हो जाता है…
और विनाश के काले बादलों का
नेतृत्व करने लगता है…।
युद्ध
अमानुषता की बिसात पर
खेला जाने वाला ऐसा खेल है..
जिसमें,
युद्धोन्माद से उत्प्रेरित योद्धा
विजित होने के उपरांत भी
पुष्पित सुमनों की मसली हुई
हर पाँखुरी के ह्रदय से निकली
बददुआ के अचूक प्रहार से
कभी बच नही पाता है…।
समरजित होते हुए भी
पराजित हो जाता है…।
आत्मग्लानि का भागी बनते हुए
पश्चाताप की आंतरिक जकड़न से
कभी मुक्त नही हो पाता है…।
चरनजीत सिंह कुकरेजा
भोपाल

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।

बहुत ही प्रासंगिक और विचारणीय रचना2