हास्य व्यंग गीत, कुर्सी मैया -अटल मुरादाबादी

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 हास्य-व्यंग्य गीत

कुर्सी मैया की वंदना!

हे कुर्सी मैया तुम फिर से, मेरा बेड़ा पार करो।
देकर मुझको फिर से कुर्सी,मेरे घर धन-धान्य भरो।।

पांच साल तक सुख वैभव का
जी भरकर आनंद लिया।
राजनीति के सुखद सुमन का
मैंने मृदु मकरंद पिया।।
एक बार फिर कुर्सी मैया, मुझ पर यह उपकार करो।
देकर मुझको फिर से कुर्सी, मेरे घर धन-धान्य भरो।।

नतमस्तक नित तेरे सम्मुख
करते सब कुर्सी मैया।
छोटे बड़े सभी नेतागण
करते हैं था – था थैया।।
मेरे सम्मुख जटिल समस्या,इसका तुम उपचार करो।
देकर मुझको फिर से कुर्सी, मेरे घर धन-धान्य भरो।।

राजनीति के प्रबल विरोधी
सबको धूल चटायी थी।
तेरी किरपा से ही मैया
मैंने कुर्सी पायी थी।
पा जाऊं मैं फिर से कुर्सी, कुछ ऐसा इस बार करो।
देकर मुझको फिर से कुर्सी, मेरे घर धन-धान्य भरो।।

अटल मुरादाबादी

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