पठन पाठन के स्तर पर लगभग पूरा देश दीर्घतमा को प्राप्त है-प्रदीप पाण्डेय

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पाठक मंच गोष्ठी, पुस्तक विमोचन व सम्मान समारोह संपन्न

पठन पाठन के स्तर पर लगभग पूरा देश दीर्घतमा को प्राप्त है-प्रदीप पाण्डेय

सागर।
साहित्य अकादमी म.प्र.संस्कृति परिषद भोपाल के उपक्रम पाठक मंच सागर की पुस्तक समीक्षा गोष्ठी शनिवार को दोपहर जे.जे.इंस्टिट्यूट सिविल लाइंस में आयोजित हुई। गोष्ठी में लेखक सूर्यकांत बाली के उपन्यास *दीर्घतमा* पर उपन्यासकार प्रदीप पाण्डेय ने पुस्तक पर समीक्षा आलेख वाचन में कहा दीर्घतमा वैदिक काल के नेत्रहीन ऋषि थे जिनके नाम का अर्थ होता है “दीर्घ”। मतलब लम्बी और “तमा” मतलब काली घनघोर रात ।आज ऐसी पठन- पाठन की सामग्री में सूर्यकांत बाली का यह उपन्यास प्रासंगिक है क्योंकि आज की युवा पीढ़ी पठन – पाठन के लिये सिर्फ सोशल मीडिया को ही अंगीकार करती जा रही है। इससे लगता है कि पठन- पाठन के स्तर पर पूरा देश दीर्घतमा को प्राप्त है ।
मुख्य अतिथि कवयित्री डॉ.कुसुम सुरभि अवस्थी ने पुस्तक को भारतीय संस्कृति के वैदिक काल को पुनर्जीवित करने वाला अद्भुत ग्रंथ उल्लेखित करते हुए उन्होंने विचारधारा विशेष के कतिपय लेखकों द्वारा भारत के सांस्कृतिक वैभव को धूमिल करने के प्रयासों की आलोचना की।
सत्यम बुंदेली संग्रहालय के अध्यक्ष दामोदर अग्निहोत्री ने अध्यक्षीय उद्बोधन में साहित्य अकादमी द्वारा पाठक मंचों में चर्चा के लिए भारत के आध्यात्मिक स्वरूप और इतिहास की जानकारी देने वाली पठनीय और संग्रहणीय पुस्तकें भेजें जाने को सराहा।
इस अवसर पर वरिष्ठ कवि बिहारी सागर की काव्य कृति “बुंदेली मकुइयां” का विमोचन और लेखक का सम्मान शाल,श्रीफल, पुष्पमाला और सम्मान पत्र ‌भेंट कर पाठक मंच द्वारा किया गया। श्यामलम् सचिव कपिल बैसाखिया ने सम्मान पत्र का वाचन किया। कवि पूरनसिंह राजपूत, डॉ. सुश्री शरद सिंह, डॉ.अशोक कुमार तिवारी और लेखक बिहारी सागर ने विमोचित पुस्तक पर अपने विचार रखे।
कार्यक्रम का प्रारंभ सरस्वती जी के चित्र पर माल्यार्पण तथा डॉ.बी डी पाठक द्वारा सरस्वती वंदना से‌ हुआ।
पाठक मंच सागर के केंद्र संयोजक आर के तिवारी ने अतिथि स्वागत और कार्यक्रम परिचय दिया। संचालन स्वर संगम संस्था अध्यक्ष हरीसिंह ठाकुर ने किया तथा आभार प्रदर्शन मुकेश तिवारी ने किया।
इस अवसर पर डॉ.गजाधर सागर, शिव रतन यादव, उमा कान्त मिश्र,पी आर मलैया,हरी शुक्ला, भगवान दास रायकवार, अशोक गोपीचंद रायकवार, कृष्ण कुमार पाठक, गणेश प्रसाद चौरसिया, मुकेश कोरी आदि उपस्थित थे।

डॉ चंचला दवे सागर

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