काव्य भाषा : सूक्ष्म विश्लेषण – चरनजीत सिंह कुकरेजा भोपाल

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सूक्ष्म विश्लेषण

हर बार हो जाती है गीली
नयनों की कोर,
जब करता हूँ मैं
आदर्शों की डगर पर
उपेक्षित सी पड़ी
मानवता की लाश का
*सूक्ष्मता से विश्लेषण*।
काश..!
दम तोड़ने के पहले
वह दे सकती अपना बयान
कर सकती
अपने कातिलों की पहचान…।

हर बार हो जाती है गीली
नयनों की कोर,
जब करता हूँ मैं
कुर्सियाँ निगलने के लिए
कागज़ी शेरों की दहाड़ और
दुर्भावना छुपाने के लिये
सद्भावना की आड़ का *सूक्ष्मता से विश्लेषण*….।

हर बार हो जाती है गीली
नयनों की कोर,
जब करता हूँ मैं
न्याय व्यवस्था का *सूक्ष्म विश्लेषण*…।
और देखता हूँ कि
कोई चीख-चीख कर
कर रहा है सत्य की पैरवी…..
पर,
पहुँच नही पा रही उसकी आवाज़
रिश्वत की रुई ठुंसे
न्याय के कानों तक….।

निरन्तर किये जाने वाले
*सूक्ष्म विश्लेषण* से
हो जाता है मन आहत्
और गहन चिंतन करते हुए
सोचता है कि,
काश…!
बापू के आज्ञाकारी बंदर
हटा लेते
आँख,कान और मुँह पर
सदियों से रखे
अपने निष्ठावान हाथ।
और देख लेते
शैतानियत का नंगा नाच,
सुन सुन लेते
आम आदमी की फ़रियाद,
और निर्भय पूर्वक बोलते
भ्र्ष्टाचार और शोषण में लिप्त
दुष्ट प्रवर्तियों के ख़िलाफ़…..।
काश!!!
स्थितियाँ बदल पाती….।
उलझती जा रही
मन की गुत्थियाँ सुलझ पाती..।

चरनजीत सिंह कुकरेजा
भोपाल

2 COMMENTS

  1. वाह ! वाह !!
    क्या बात है l
    बहुत ही सूक्ष्मता के साथ आपने वर्तमान की भयावह परिस्थिति का विश्लेषण किया है l???

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