प्रसाद जी के साहित्य से राष्ट्रभाषा हिन्दी की।प्रगति को नई दिशा मिली – परिणय गुप्ता

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प्रसाद जी के साहित्य से राष्ट्रभाषा हिन्दी की।प्रगति को नई दिशा मिली – परिणय गुप्ता

प्रसाद जी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अग्रणी रचनाकार – डॉ.कुमार आशीष

भोपाल ।
देश के शीर्षस्थ साहित्यकार और छायावाद के चार प्रमुख स्तम्भों में से एक श्री जयशंकर प्रसाद के साहित्य से राष्ट्रभाषा हिन्दी खूब पल्लवित पुष्पित हुई और उसकी प्रगति को एक नई दिशा मिली ,यह उदगार हैं श्री परिणय गुप्ता ,मुख्य कारखाना प्रबंधक, सडीपुका पश्चिम-मध्यरेल भोपाल के जो राजभाषा अनुभाग द्वारा प्रसाद जी की 133 वीं जयंती के अवसर पर आयोजित परिचर्चा एवम कविगोष्ठी के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में अपनी बात रख रहे थे |

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे उपमुख्य यांत्रिक इंजीनियर साहित्यकार डॉ कुमार आशीष ने कहा कि-‘प्रसाद जी प्रसाद जी साहित्यकार के रूप में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अग्रणी रचनाकार थे ,उन्होंने कामायनी जैसे महाकाव्य में पहली बार संस्कृतनिष्ठ खड़ी हिंदी को रम्य रूप में प्रस्तुत किया ,आपने भारत में नाट्य परम्परा को पुनः समृद्ध और स्थापित किया |

कार्यक्रम से पूर्व मंचस्थ अतिथियों ने जयशंकर प्रसाद जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यक्रम का विधिवत शुभारम्भ किया | आयोजन के दूसरे चरण में घनश्याम मैथिल ‘अमृत’ के संचालन में एक सरस् कवि गोष्ठी हुई ,जिसमें हीरालाल पारस ,गिरजाशंकर नीर, सतीशचन्द्र श्रीवास्तव सागर, संत कुमार मालवीय सन्त ,बी एन तिवारी साहिब, अनिल रंगोटा ,अखिलेश लोधी ने सरस् काव्यपाठ किया |

कार्यक्रम के अंत में वरिष्ठ अनुवादक बृजेन्द्र कुमार सिंह ने सभी उपस्थितजनों का आभार माना | आयोजन में संस्थान के अनेक साहित्यप्रेमी श्रोता कर्मचारी अधिकारी उपस्थित थे |

गोकुल सोनी

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