
सड़क दुर्घटनाएं क्या इक्के दुक्के दिनों के शोक के लिए हैं ::
इंजी. बीबीआर गाँधी
परसों रात होशंगाबाद जिले के शोभापुर में व्यसायी की मृत्यु अपनी पत्नी और माँ सहित सड़क दुर्घटना में हो गई, इस घटना का सदमा परिवारजनों और सगे सम्बन्धियों सहित हमें भी है. क्योंकि जीवन की इहलीला किसी सड़क दुर्घटना में हो हममें से कोई नहीं चाहता है. हर कोई चाहता है कि जो व्यक्ति मानव जीवन लेकर इस धरती पर आया है वो जीवन के सभी आयाम अच्छे से अच्छा जीकर देहत्याग करे.
पिछले 2 वर्षों से कोरोना ने देश में कोहराम मचाया हुआ है लाखों लोग इसकी चपेट में आकर जीवन गँवा चुके हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि हर साल लाखों लोग सड़क दुर्घटनाओं का शिकार होते चले आ रहे हैं और उनमें बड़ी तादाद में मौत के मुंह में चले जा रहे हैं. हर दुर्घटना के पीछे कोई न कोई कारण जरुर होता है, कोई भी वाहन चालक दुर्घटनाग्रस्त होकर जान नहीं गंवाना चाहता, लेकिन जान तो जा रही हैं.
देश भर में सड़कों की गुणवत्ता में सुधर हुआ है, नए वैकल्पिक बेहतर गुणवत्ता के हाई वे बन गए हैं. इन पर से गुजरने वाले वाहनों की रफ़्तार में इजाफा हुआ है, सफ़र के समय में कमी आई है. वहां चलेंगे तो दुर्घटनाओं का होना लाज़मी है क्योंकि हर दुर्घटना का मतलब मौत नहीं होता और न ही कारण ही ऐसा होता है. वाहन के अचानक ख़राब हो जाना या टायर फट जाना या ऐसा ही कुछ जो सामान्यतः नियंत्रण में न हो दुर्घटनाजनक हो सकता है.
लेकिन लोगों का गैरजिम्मेदाराना या लायकी भरा रवैया जब दुर्दांत घटनाओं का कारण बनता है तब बहुत क्षोभ होता है. जिनमें अनियंत्रित रफ़्तार पर वाहन चलाना, नियमों कि अनदेखी करना और हीरोपंती दिखाना आदि कई उदाहरण शामिल हैं.
हमारे देश में आबादी और क्षेत्रफल के हिसाब से वाहनों की संख्या बहुत ज्यादा हो गई है और वाहनों के सभी प्रकारों की बिक्री भी बदस्तूर जारी है. न नियमों के पालन कराने में सिस्टम कारगर हो रहा है और न ही दुर्घटनाओं पर रोक लगा पाने में. ताज्जुब की बात तो यह है कि सारा देश लगभग इस मामले में नालायकी ज्यादा से ज्यादा दिखाने की होड़ में लगा हुआ है. अभिव्यक्ति में किस किस को जिम्मेदार ठहराया जाए ज़रा मुश्किल ही है.
शोभापुर के परिवार की हालिया दुर्घटना इटारसी से जुडी हुई है क्योंकि ये परिवार किसी शादी समारोह में शामिल होने के बाद वापस लौट रहा था, समाचार पत्रों या न्यूज़ चैनलों में विस्तार के साथ आये वृत्तान्त को पढ़कर देखकर इटारसी के उन परिवारों के ज़ख्म जरुर हरे हो गए होंगे जिनके परिवार ऐसी ही किसी सड़क दुर्घटना में अपनों को खो चुके हैं.
घटनाएँ यदि बुरी हों तो सबक बनती हैं लेकिन सिस्टम सबक लेकर सड़क पर होने वाली इन दुर्घटनाओं को रोकने में ईमानदारी के साथ कब आगे आएगा पता नहीं.

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।