

डॉ कविता शुक्ला के सौजन्य से”मकर संक्रांति पर्व की महत्ता और वैज्ञानिकता “पर मंडल परिचर्चा
सागर।
भारतीय शिक्षण मंडल “महिला प्रकल्प “महाकौशल प्रांत” सागर मे वाग्मिता मंडल की संयोजिका कविता शुक्ला के सौजन्य से “मकर संक्रांति पर्व की महत्ता और वैज्ञानिकता “पर मंडल परिचर्चा का आयोजन।
भारतीय शिक्षण मंडल महिला प्रकल्प महाकौशल प्रांत सागर की वाग्मिता मंडल की संयोजिका डॉ. कविता शुक्ला के सौजन्य से “मकर संक्रांति पर्व की महत्ता और वैज्ञानिकता” विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई। परिचर्चा का शुभारंभ ध्येय मंत्र श्रीमती पूनम मेवाति द्वारा, ध्येय वाक्य श्रीमती शोभा सराफ, सरस्वती वंदना श्रीमती विमलेश गुप्ता, और संगठन गीत श्रीमती आराधना रावत के गान द्वारा हुआ । अध्यक्षता करते हुए डॉ सुधा गुप्ता अमृता ने कहा कि यह पर्व सूर्य की आराधना का पर्व है । यह पर्व चमत्कारिक खगोलीय बदलाव है जिससे संपूर्ण सृष्टि प्रभावित होती है लाखों लोग संगम पर स्नान, ध्यान ,दान ,धर्म करते हैं। इस पर्व का धार्मिक ,वैज्ञानिक सांस्कृतिक ,ऐतिहासिक, सभी तरह से महत्व है किंतु, वर्तमान दौर बेहद खतरनाक गुजर रहा है ।कोरोना ने पूरा जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है ।शीतलहर का प्रकोप जारी है, पास में महामारी है।तिल गुड़ कंबल का दान करें,सत्यं शिवं का गुणगान करें।त्योहार मनाऐं ,घर पर सुरक्षित रहें ,छत पर खूब पतंगे उड़ाएं। मकर संक्रांति मनाऐं । कार्यक्रम की विषय प्रवर्तक प्रोफेसर सरोज गुप्ता ने कहा कि देवताओं के दिन का उदय मकर संक्रांति से ही माना जाता,यह संक्रान्ति पर्व सूर्यनारायण की प्रतिष्ठा का पर्व है।सूर्य नारायण के मकर राशि में पहुंचने पर सम्पूर्ण सृष्टि का कण कण ऊर्जस्वित हो उठता है। प्रकृति में ऊर्जा का शुभारंभ इसी दिन से होता है। हम सब उत्साह से इस पर्व को मनाये और जप तप दान करें। मंच का कुशल संचालन श्रीमती शशि दीक्षित द्वारा किया गया। महिला प्रकल्प की सदस्य बहनों ने मकर संक्रांति पर्व पर अपने अपने विचार रखे।श्रीमती शोभा सराफ के अनुसार पृथ्वी अपनी धुरी पर 23.5 अंश झुकी हुई घूमती है मकर संक्रांति से सूर्य की किरणें उत्तरी गोलार्द्ध( जिसमें भारतवर्ष स्थित है) पर पड़ने लगती है जिससे क्रमश:दिन बड़े होने लगते हैं सूर्य की ऊष्मा से गर्मी और प्रकाश बढ़ जाता है और जड़ चेतन पशु पक्षियों में नया जोश भर जाता है ।यह पर्व हमारी संस्कृति और सनातन धर्म से जुड़ा हुआ है।डॉ उषा मिश्रा ने कहा-मकर संक्रांति एक ऐसा त्यौहार है जो धरती की तुलना में सूर्य की स्थिति के हिसाब से मनाया जाता है, यही वजह है चन्द्रमा की स्थिति में मामूली हेर- फेर की वजह से यह कभी 14 को, तो कभी 15 जनवरी को मनाया जाता है।श्रीमती मृदुला अग्रवाल ने कहा पौष मास में सूर्य का धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश मकर संक्रांति से जाना जाता है । तमसो मा ज्योतिर्गमय का उद्घोष करने वाली भारतीय संस्कृति में सूर्य की आराधना और उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं । इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करता है और पॉज़िटिव एनर्जी देता है श्रीमती विमलेश गुप्ता के अनुसार- गुड की मिठास ,दिल की बहार ,सब मिलकर मनाएं मकर संक्रांति का त्यौहार।
डॉ प्रीति शर्मा ने कहा -मान्यताओं के अनुसार त्रेता युग में भगवान राम ने मकर संक्रांति के दिन अपने भाइयों और हनुमान जी के साथ पतंग उड़ाई थी तब से मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परंपरा शुरू हुई
डॉ कृष्ण गुप्ता ने कहा भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है अतः तमसो मा ज्योतिर्गमय का उद्घोष करने वाली भारतीय संस्कृति में मकर संक्रांति अत्यंत महत्वपूर्ण है. पूनम मेवाती नै कहा -नए साल में सूर्य देव का पहली बार राशि परिवर्तन होने जा रहा है। श्रीमती पल्लवी सक्सेना ने कहा मकर संक्रांति के समय नदियों में वाष्पन क्रिया होती है इससे तमाम तरह के रोग दूर हो सकते हैं इसलिए इस दिन नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व है । रूपा राज ने कहा- मीठी बोली मीठी जुबान मकर संक्रांति पर यही है पैगाम
श्रीमती शशि दीक्षित के अनुसार मकर संक्रान्ति की अवधि से नदियों में वाष्पीकरण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है,इस कारण नदियों के जल में अनेक प्रकार के औषधीय गुण आ जाते हैं,इसीलिए नदियों में स्नान करने की परंपरा है,यह इस त्योहार वैज्ञानिक आधार है।शैलबाला के अनुसार तिल में कड़वे कसैली गुणों के कारण कफ और पित्त को नष्ट करने वाले बल दायक हितकारी पोषक तत्व पाए जाते हैं यह बालों और त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद होता है । आराधना रावत के अनुसार- सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन होते हैं दक्षिणायन को नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है, । माधुरी राजपूत के अनुसार- ठण्ड की इस सुबह पड़ेगा हमे नहाना,क्योंकि संक्रांति का पर्व कर देगा मौसम सुहाना,
कहीं जगह जगह पतंग है उड़ाना,कहीं गुड कहीं तिल के लड्डू मिल कर है खाना.। पूजा केशरवानी के अनुसार मकर संक्रांति से रात छोटी व दिन बड़ा होने लगता है।प्रकाश में वृद्धि के कारण मनुष्य की शक्ति में वृद्धि होती है।श्रीमती अर्चना पाराशर ने कहा- इस समय नदियों और तालाबों में वाष्पन की क्रिया होती है । इस समय नदियों में नहाने से कई प्रकार के रोग दूर होती है । भारत का यह अकेला उत्सव है जो खगोलीय घटना पर आधारित है । यह अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का पर्व है।श्रीमती मनीषा मिश्रा -मकर संक्रांति पर्व सूर्य की आराधना एवं उपासना का पावन वृत है। जो तन मन और आत्मा को शक्ति प्रदान करता है और मनुष्य प्रगति की ओर अग्रसर होता है।दिव्या मेहता ने कहा- मकर संक्रांति पर्व हिंदुओं का विशेष पर्व है इस दिन तिल गुड़ और खिचड़ी खाते है जो स्वास्थ्य और वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। श्रीमती आराधना खरे ने मकर संक्रांति के वैज्ञानिक महत्व पर प्रकाश डाला।संयोजिका डॉ कविता शुक्ला ने बताया -कि पृथ्वी द्वारा सूर्य का पूरा एक चक्कर लगाना संक्रांति चक्र कहलाता है। यहां एक चक्कर १२ भागों में बांटकर १२ राशियां बनीं हैं । पृथ्वी का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है।सभी मातृ शक्तियों ने बहुत सुंदर वक्तव्य दिए ।अंत में तमसो मा ज्योतिर्गमय हे सूर्यदेव ! मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो के साथ डॉ कविता शुक्ला ने सभी के प्रति आभार प्रकट किया।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
